देश में मनमाने तरीके से देशद्रोह के आरोप थोप कर लोगों को बगैर मुकदमे के जेल भेजा रहा है : नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने देश में चर्चा और असहमति की गुंजाइश कम होते जाने को लेकर रोष प्रकट किया है। साथ ही, उन्होंने दावा किया कि मनमाने तरीके से देशद्रोह के आरोप थोप कर लोगों को बगैर मुकदमे के जेल भेजा रहा है। हालांकि, अक्सर ही सेन की आलोचना के केंद्र में रहने वाली भाजपा ने इस आरोप को बेबुनियाद करार दिया है।

हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्राध्यापक सेन (87) ने एक ईमेल के जरिए दिए साक्षात्कार में केंद्र के तीनों नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का समर्थन किया। साथ ही, उन्होंने जोर देते हुए कहा कि इन कानूनों की समीक्षा करने के लिए एक ‘मजबूत आधार’ है।

उन्होंने कहा कि कोई व्यक्ति जो सरकार को पसंद नहीं आ रहा है, उसे सरकार द्वारा आतंकवादी घोषित किया जा सकता है और जेल भेजा सकता है। लोगों के प्रदर्शन के कई अवसर और मुक्त चर्चा सीमित कर दी गई है या बंद कर दी गई है।

प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि असहमति और चर्चा की गुंजाइश कम होती जा रही है। लोगों पर देशद्रोह का मनमाने तरीके से आरोप लगा कर बगैर मुकदमा चलाए जेल भेजा जा रहा है। उन्होंने इस बात पर दुख जताया कि कन्हैया कुमार, शेहला राशिद और उमर खालिद जैसे युवा कार्यकर्ताओं के साथ अक्सर दुश्मनों जैसा व्यवहार किया गया है।

उन्होंने दावा किया कि शांतिपूर्ण एवं अहिंसक तरीकों का इस्तेमाल करने वाले कन्हैया या खालिद या शेहला जैसी युवा एवं दूरदृष्टि रखने वाले नेताओं के साथ राजनीतिक संपत्ति की तरह व्यवहार करने के बजाय उनके साथ दमन योग्य दुश्मनों जैसा बर्ताव किया जा रहा है। जबकि उन्हें गरीबों के हितों के प्रति उनकी कोशिशों को शांतिपूर्ण ढंग से आगे बढ़ाने का अवसर दिया जाना चाहिए था।

चर्चा और असहमित की गुंजाइश कथित तौर पर सिकुड़ने के बारे में सेन के विचारों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई प्रमुख दिलीप घोष ने कहा कि उनकी (सेन की) दलील बेबुनियाद है।

घोष ने कहा कि आरोप बेबुनियाद हैं। यदि वह देखना चाहते हैं कि असहिष्णुता क्या है तो उन्हें पश्चिम बंगाल की यात्रा करनी चाहिए, जहां किसी भी विपक्षी दल के पास अपने कार्यक्रम करने के लिए लोकतांत्रिक अधिकार नहीं है।

भाजपा नीत सरकार को लेकर पूछे जाने पर प्रख्यात अर्थशास्त्री ने कहा कि जब सरकार गलती करती है तो उससे लोगों को नुकसान होता है, इस बारे में न सिर्फ बोलने की इजाजत होनी चाहिए, बल्कि यह वास्तव में जरूरी है। लोकतंत्र इसकी मांग करता है!

उल्लेखनीय है भाजपा नीत सरकार के बारे में सेन के विचारों को अक्सर ही विपक्ष के समर्थन में देखा जाता है। सेन ने कहा कि तीनों कृषि कानूनों की समीक्षा करने के लिए मजबूत आधार हैं क्योंकि इन कानूनों के खिलाफ किसान प्रदर्शन कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि निश्चित तौर पर इन कानूनों की समीक्षा करने के लिए एक मजबूत आधार है। लेकिन पहली जरूरत यह है कि उपयुक्त चर्चा की जाए, न कि कथित तौर पर बड़ी रियायत देने की बात कही जाए, जो असल में बहुत छोटी रियायत होगी।

दिल्ली से लगी सीमाओं पर पिछले करीब एक महीने से नए कृषि कानूनों के खिलाफ हजारों किसानों के प्रदर्शन करने के मद्देनजर सेन ने यह टिप्पणी की है। प्रदर्शनकारी किसान सितंबर में लाए गए इन कानूनों को रद्द करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गांरटी देने की मांग कर रहे हैं।

किसानों के प्रदर्शन को लेकर सेन के रुख पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने कहा कि सरकार ने मुद्दों का हल करने और किसान संगठनों द्वार प्रकट की गई चिंताओं को दूर करने के लिए सभी कोशिशें की हैं।

सेन ने यह भी कहा कि भारत में वंचित समुदायों के साथ व्यवहार में बड़ा अंतर मौजूद है। उन्होंने कहा कि शायद सबसे बड़ी खामी, नीतियों का घालमेल है, जिसके चलते बाल कुपोषण का इतना भयावह विस्तार हुआ है। इसके उलट, हमें विभिन्न मोर्चों पर अलग-अलग नीतियों की जरूरत है।

कोविड-19 महामारी से लड़ने की देश की कोशिशों पर सेन ने कहा कि भारत सामाजिक मेल-जोल से दूरी रखने की जरूरत के मामले में सही था, लेकिन बगैर किसी नोटिस के लॉकडाउन थोपा जाना गलत था।

उन्होंने कहा कि आजीविका के लिए गरीब श्रमिकों की जरूरत को नजरअंदाज करना भी गलती थी। उन्होंने मार्च के अंत में लॉकडाउन लागू किए जाने के बाद करोड़ों लोगों के बेरोजगार हो जाने और प्रवासी श्रमिकों के बड़ी तादाद में घर लौटने का जिक्र करते हुए यह कहा। उन्होंने कहा कि देश के विभाजन के बाद शायद पहली बार इतनी संख्या में लोगों ने पलायन किया।

कोविड-19 रणनीति के क्रियान्वयन में कहीं अधिक बुद्धिमत्तापूर्ण तर्क और मानवीय संवेदना की जरूरत पर जोर देते हुए सेन ने कहा कि भारत ने कुछ सही विचार पाए थे। लेकिन भारी असमानता की देश की सच्चाई को अनदेखा कर इसके प्रति प्रतिक्रिया को अव्यवस्थित कर दिया गया। उन्होंने कहा कि भारी असमानता की मौजूदगी भारत के नीति निर्माण के हर पहलू को प्रभावित करेगी।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com