उत्तरी मध्य प्रदेश में फैला चंबल का इलाका जहां तेजी से बीहड़ में बदल रहा है, वहीं हजारों हेक्टेयर में पसर चुके बीहड़ों के अब रेगिस्तान में तब्दील होने का डर है। मौसम विभाग ने ताजा अध्ययन रिपोर्ट में आशंका जताई है कि यही स्थिति रही तो समूचा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो सकता है। इसका असर समूचे उत्तर व मध्य भारत पर पड़ेगा। बारिश हो रही कम, बढ़ रहा तापमान  चंबल इलाके में गत 37 वर्षों में बारिश में 100 मिमी तक की कमी दर्ज की गई है। बारिश में जहां हर साल औसतन 2.7 मिलीमीटर की कमी हुई है, वहीं तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। 1980 के दशक में मई व जून में जो पारा 44 डिग्री और उससे नीचे रहता था, अब वह तापमान 45 से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुंच गया है। मौसम विभाग का चंबल अंचल पर किया गया हालिया शोध कहता है कि यदि यही स्थिति रही तो हजारों हेक्टेयर में फैले बीहड़ों को रेगिस्तान में बदलने से नहीं रोका जा सकेगा। पिछले दस वर्षों में यहां करीब 50 फीसद कृषि भूमि बीहड़ में बदल गई। मुरैना, भिंड और श्योपुर जिले के 1050 गांवों ने अस्तित्व खो दिया। भूजल स्तर 600 फीट पर पहुंचा 1980 के बाद से यहां लोग सूखे की मार झेल रहे हैं। औसत बारिश का कोटा 800 मिमी से 699 पर आ गया है। यही स्थिति रही तो 2050 तक औसत बारिश में 90 मिमी की और गिरावट आएगी और औसत बारिश का कोटा 600 मिमी पर आ जाएगा। सर्दी व बारिश के दिन भी घट रहे हैं। गर्मी का समय बढ़ रहा है। दिसंबर के मध्य व जनवरी में ही ठंड पड़ रही है। जल संसाधन विभाग के अधिकारी आरएस कुशवाह के अनुसार औसत बारिश घटने से अंचल के बांध नहीं भर पा रहे हैं। भूमिगत जलस्तर में गिरावट आ रही है। अंचल में कई जगह भूजल स्तर 600 फीट तक जा पहुंचा है।

देश में बनने जा रहा नया रेगिस्‍तान, मध्‍य और उत्‍तर भारत पर पड़ेगा बुरा प्रभाव

उत्तरी मध्य प्रदेश में फैला चंबल का इलाका जहां तेजी से बीहड़ में बदल रहा है, वहीं हजारों हेक्टेयर में पसर चुके बीहड़ों के अब रेगिस्तान में तब्दील होने का डर है। मौसम विभाग ने ताजा अध्ययन रिपोर्ट में आशंका जताई है कि यही स्थिति रही तो समूचा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो सकता है। इसका असर समूचे उत्तर व मध्य भारत पर पड़ेगा।उत्तरी मध्य प्रदेश में फैला चंबल का इलाका जहां तेजी से बीहड़ में बदल रहा है, वहीं हजारों हेक्टेयर में पसर चुके बीहड़ों के अब रेगिस्तान में तब्दील होने का डर है। मौसम विभाग ने ताजा अध्ययन रिपोर्ट में आशंका जताई है कि यही स्थिति रही तो समूचा इलाका रेगिस्तान में तब्दील हो सकता है। इसका असर समूचे उत्तर व मध्य भारत पर पड़ेगा।  बारिश हो रही कम, बढ़ रहा तापमान  चंबल इलाके में गत 37 वर्षों में बारिश में 100 मिमी तक की कमी दर्ज की गई है। बारिश में जहां हर साल औसतन 2.7 मिलीमीटर की कमी हुई है, वहीं तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। 1980 के दशक में मई व जून में जो पारा 44 डिग्री और उससे नीचे रहता था, अब वह तापमान 45 से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुंच गया है।  मौसम विभाग का चंबल अंचल पर किया गया हालिया शोध कहता है कि यदि यही स्थिति रही तो हजारों हेक्टेयर में फैले बीहड़ों को रेगिस्तान में बदलने से नहीं रोका जा सकेगा। पिछले दस वर्षों में यहां करीब 50 फीसद कृषि भूमि बीहड़ में बदल गई। मुरैना, भिंड और श्योपुर जिले के 1050 गांवों ने अस्तित्व खो दिया।  भूजल स्तर 600 फीट पर पहुंचा 1980 के बाद से यहां लोग सूखे की मार झेल रहे हैं। औसत बारिश का कोटा 800 मिमी से 699 पर आ गया है। यही स्थिति रही तो 2050 तक औसत बारिश में 90 मिमी की और गिरावट आएगी और औसत बारिश का कोटा 600 मिमी पर आ जाएगा। सर्दी व बारिश के दिन भी घट रहे हैं। गर्मी का समय बढ़ रहा है। दिसंबर के मध्य व जनवरी में ही ठंड पड़ रही है। जल संसाधन विभाग के अधिकारी आरएस कुशवाह के अनुसार औसत बारिश घटने से अंचल के बांध नहीं भर पा रहे हैं। भूमिगत जलस्तर में गिरावट आ रही है। अंचल में कई जगह भूजल स्तर 600 फीट तक जा पहुंचा है।

बारिश हो रही कम, बढ़ रहा तापमान 
चंबल इलाके में गत 37 वर्षों में बारिश में 100 मिमी तक की कमी दर्ज की गई है। बारिश में जहां हर साल औसतन 2.7 मिलीमीटर की कमी हुई है, वहीं तापमान में दो डिग्री की बढ़ोतरी हुई है। 1980 के दशक में मई व जून में जो पारा 44 डिग्री और उससे नीचे रहता था, अब वह तापमान 45 से 47 डिग्री सेल्सियस के बीच पहुंच गया है।

मौसम विभाग का चंबल अंचल पर किया गया हालिया शोध कहता है कि यदि यही स्थिति रही तो हजारों हेक्टेयर में फैले बीहड़ों को रेगिस्तान में बदलने से नहीं रोका जा सकेगा। पिछले दस वर्षों में यहां करीब 50 फीसद कृषि भूमि बीहड़ में बदल गई। मुरैना, भिंड और श्योपुर जिले के 1050 गांवों ने अस्तित्व खो दिया।

भूजल स्तर 600 फीट पर पहुंचा

1980 के बाद से यहां लोग सूखे की मार झेल रहे हैं। औसत बारिश का कोटा 800 मिमी से 699 पर आ गया है। यही स्थिति रही तो 2050 तक औसत बारिश में 90 मिमी की और गिरावट आएगी और औसत बारिश का कोटा 600 मिमी पर आ जाएगा। सर्दी व बारिश के दिन भी घट रहे हैं। गर्मी का समय बढ़ रहा है। दिसंबर के मध्य व जनवरी में ही ठंड पड़ रही है। जल संसाधन विभाग के अधिकारी आरएस कुशवाह के अनुसार औसत बारिश घटने से अंचल के बांध नहीं भर पा रहे हैं। भूमिगत जलस्तर में गिरावट आ रही है। अंचल में कई जगह भूजल स्तर 600 फीट तक जा पहुंचा है।

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