देश में पहली बार मरीज को लगाया गया सबसे छोटा हार्ट पंप

देश में पहली बार फोर्टिस एस्कॉर्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट में डॉक्टरों ने 86 वर्षीय बुजुर्ग मरीज के हृदय में सबसे छोटा हार्ट पंप लगाया गया। ताकि मरीज के महत्वपूर्ण अंगों तक सामान्य रूप से रक्त प्रवाह सुनिश्चित हो सके। इस हार्ट पंप को लगाने के बाद मरीज को जटिल एंजियोप्लास्टी की गई।

ढ़ाई घंटे के इस प्रक्रिया में पांच स्टेंट डाले गए। खास बात यह है कि मरीज की हालत स्थिर होने पर हार्ट पंप को निकाल भी लिया गया। पूरी प्रक्रिया संस्थान के कार्डियक वैस्क्यूलर विज्ञान के चेयरमैन डॉ. अशोक सेठ के नेतृत्व में हुआ। उन्होंने कहा कि यह दुनिया का सबसे छोटा हार्ट पंप है। इसका इस्तेमाल हार्ट फेल्योर, हार्ट अटैक के बाद कार्डियक शॉक व हृदय की धमनियों में अधिक ब्लॉकेज होने पर अत्यधिक जोखिम भरी एंजियोप्लास्टी व सर्जरी के दौरान मरीजों में किया जाता है।

यह उपकरण हृदय को स्थिर कर देता है। इसलिए शरीर के अन्य हिस्सों में रक्त संचार के लिए हृदय को जोर लगाने की जरूरत नहीं पड़ती। यह हार्ट पंप ही मस्तिष्क, किडनी सहित अन्य महत्वपूर्ण अंगों तक रक्त प्रवाह सुनिश्चत करता है। यह उपकरण कैथेटर की तरह होता है और सबमर्सिबल पंप की सिद्धांत पर काम करता है।

यह पेंसिल की तरह होता है और करीब छह इंच का उपकरण होता है। यह हृदय की बिगड़ती स्थिति में पांच से सात दिन संभाल सकता है। डॉ. अशोक सेठ ने कहा कि सामान्य हार्ट पंप बड़े होते हैं। उसे लगाने के लिए सर्जरी करनी पड़ती है और निकाला नहीं जा सकता। जबकि इस हार्ट पंप को लगाने के लिए ऑपरेशन की जरूरत नहीं पड़ती।

इसे कैथेटर की मदद से जांघ की धमनियों के माध्यम से हृदय में लगाया जाता है। यह हृदय से प्रतिमिनट ढ़ाई से 3.50 लीटर रक्त पंप करता है। हृदय जब ठीक से दोबारा काम करना शुरू कर देता है तो उसे आसानी से निकाल लिया जाता है। इस तरह यह उपकरण मरीज के हृदय को ठीक होने में मदद करता है।

अस्पताल के अनुसार 26 जून को हार्ट अटैक के बाद मरीज को अस्पताल लाया गया था। जांच में पता चला कि मरीज की धमनियों में कड़े कैल्शियम की परत जमने के कारण 90 फीसद ब्लॉकेज है। मरीज के तीन धमनियों में रोटाब्लेटर ड्रिलिंग कर कैल्शियम की परत को तोड़ा गया और ढ़ाई घंटे में एंजियोप्लास्टी कर पांच स्टेंट डाले गए।

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज को सबसे छोटे हार्ट पंप (इंपेला डिवाइस) के सहारे रखा गया। मरीज की हालत स्थिर होने के बाद पांच घंटे में उनके हृदय से इस उपकरण को निकाल लिया गया। हालांकि यह महंगा उपकरण है और इसकी कीमत करीब 15 लाख है।

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