जापान की राजधानी टोक्यो में लकड़ी से बने ऐसे कई बौद्ध मंदिर हैं, जो हजारों साल पूराने हैं। इन्हीं में से एक मंदिर ऐसा है, जहां हिंदूओं के गणेश देवता से काफी मिलती-जुलती मूर्ति रखी गई है। आठवीं सदी में बने इस मंदिर का नाम मात्सुचियामा शोटेन (Matsuchiyama Shoten) है, जिसमें रखी गई मूर्ति गणेश जी का ही जापानी वर्जन है। तंत्र-मंत्र को मानने वाले बौद्ध इस मूर्ति की पूजा करते हैं।
धर्म से जुड़ें विषयों पर रिसर्च करने वाले लोगों का मानना है कि आठवीं सदी के दौरान जापान में पहली बार गणेश जी को माना जाने लगा। बौद्ध धर्म में एक ऐसी शाखा है, जिसके अनुयायी बुद्धिज्म पर यकीन करते हुए तांत्रिक शक्तियों की पूजा करते हैं। बौद्ध धर्म का ये शाखा भारत के उड़ीसा से होते हुए चीन और उसके बाद जापान पहुंचा।
जापान में गणेश जी (केंगिटेन) को एक शक्तिशाली भगवान के तौर पर देखा जाता था और इनकी पूजा भी खास तरीके से शुद्ध रहते हुए तंत्र-मंत्र के सहारे होती थी। ऐसे में गणेश जी को मानने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। इस बात का जिक्र क्लासिकल गोल्डन एज (794-1185 CE) के दौरान मिलता है। फिलहाल जापान में गणेश जी के कुल 250 मंदि हैं, लेकिन इन्हें अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है जैसे केंगिटेन, शोटेन, गनबाची (गणपति) और बिनायकातेन (विनायक)।
बता दें कि तांत्रिक बुद्धिज्म में गणेश जी को एक स्त्री हाथी से लिपटा हुआ दिखाया जाता है और इसे शक्ति कहा जाता है। यह मूर्ति पुरुष और स्त्री के मेल से पैदा हुई ऊर्जा का प्रतीक है। हालांकि, गणेश जी की मूर्ति या तस्वीरें कुछ कामुक लगने के कारण मंदिरों में सामने नहीं दिखती हैं। इन्हें लकड़ी के सजे हुए बक्से में रखा जाता है, जिसकी रोज पूजा की जाती हैं। केवल किसी खास मौके पर मूर्ति बाहर निकाली जाती है और उसकी पूजा सबके सामने होती है।
जापान में गणेश जी का सबेस बड़ा मंदिर माउंट इकोमा पर Hōzan-ji नाम से है। यह मंदिर ओसाका शहर के बाहर दक्षिणी हिस्से में बसा हुआ है। 17वीं सदी में बने इस मंदिर को लेकर कई तरह की कहानियां प्रचलित हैं। इस मंदिर के प्रति लोगों की काफी आस्था है और इच्छा पूरी होने पर यहां काफी दान-दक्षिणा भी की जाती है।