दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र पर लगाया जुर्माना, पीड़ित को विलंबित मुआवजे पर ब्याज देने का दिया निर्देश

अदालत ने कहा है कि यह ब्याज 8 अप्रैल, 2016 से देय होगा। जब 1 लाख रुपये का अनुग्रह मुआवजा जारी किया गया था और 16 जनवरी, 2006 को जब पुनर्वास नीति की घोषणा की गई थी।

उच्च न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को 1984 के सिख विरोधी दंगों के पीड़ित को विलंबित मुआवजे पर छह सप्ताह के भीतर ब्याज का भुगतान करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा अपीलकर्ता और उसके परिवार को पहले दंगाइयों के हाथों और फिर असंवेदनशील और कठोर प्रशासन के कारण कष्ट सहना पड़ा।

यह ब्याज 8 अप्रैल, 2016 से देय होगा। जब 1 लाख रुपये का अनुग्रह मुआवजा जारी किया गया था और 16 जनवरी, 2006 को जब पुनर्वास नीति की घोषणा की गई थी। इस अवधि का 10 प्रतिशत की वार्षिक ब्याज दर से भुगतान किए जाने को कहा गया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ पीड़ित की अपील पर विचार करते हुए केंद्र सरकार पर 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिसमें कहा गया था कि वह ब्याज का हकदार नहीं है।

अपीलकर्ता ने दावा किया कि 31 अक्टूबर 1984 को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद शाहदरा में उनके घर में तोड़फोड़ और लूटपाट की गई थी और उनके पिता ने पुलिस में एफआईआर दर्ज कराई थी। स्क्रीनिंग कमेटी ने अदालत के आदेशों के अनुसार अपीलकर्ता के दावों की जांच करने के बाद 2015 में 1 लाख रुपये के अनुग्रह मुआवजे के भुगतान की सिफारिश की, जिसे अप्रैल 2016 में भुगतान किया गया।

पीठ ने कहा कि हालांकि अनुग्रह मुआवजे को मंजूरी देने वाली नीति में देरी से भुगतान पर ब्याज का कोई घटक शामिल नहीं था, लेकिन इसे अदालत द्वारा उपयुक्त मामलों में प्रदान किया जा सकता है। दरअसल, नीति जिसे 1984 के दंगा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए लाया गया था को निरर्थक नहीं बनाया जा सकता है। इस मामले में अपीलकर्ता और उसके परिवार को ठीक 40 साल पहले दंगाइयों के हाथों बहुत पीड़ा झेलनी पड़ी थी और अपीलकर्ता को फिर से एक असंवेदनशील और कठोर प्रशासन के हाथों पीड़ा झेलनी पड़ी और अपनी शिकायतों के निवारण के लिए उसे चार बार संवैधानिक न्यायालयों का रुख करना पड़ा।

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