दवा कंपनियों और डॉक्टरों की मिलीभगत रोकने और दवाइयों की कीमतों में कमी लाने के लिए सरकार मार्जिन की सीमा तय कर सकती है। नैशनल फार्मासूटिकल पॉलिसी ड्राफ्ट के मुताबिक जेनरिक दवाओं को बढ़ावा देने के लिए बैंड्स के बदले सॉल्ट नाम लिखने की व्यवस्था होगी।
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सरकार ने इसके लिए ड्रॉफ्ट पॉलिसी तैयार कर ली है, जिसे पब्लिक ओपिनियन के लिए रखा गया है। सरकार का कहना है कि नए नियम लाने का उद्देश्य है कि देश भर में अच्छी क्वालिटी की दवाएं कम कीमत पर उपलब्ध हो सके।
ड्रॉफ्ट पॉलिसी में कहा गया है कि अभी मार्केटिंग प्रैक्टिस पर रेग्युलेशन वॉलंटियरी है। लेकिन, नए नियम के मुताबिक यह आवश्यक हो जाएगा। इसे लागू करवाने के लिए अलग से एजेंसी भी बनाई जाएगी जो मार्केटिंग प्रैक्टिस पर कंट्रोल रखेगी।
दवा कंपनियां फिलहाल डिस्ट्रीब्यूटर्स और रिटेलर्स के साथ मिलकर ट्रेड मार्जिन ऊंचा रखते हैं, जिससे कंज्यूमर्स तक पहुंचते-पहुंचते दवाओं की कीमत बहुत ज्यादा हो जाती है।
ये कंपनियां अपने ब्रांड को प्रमोट करने के लिए डॉक्टरों पर रेवेन्यू का औसतन 5 फीसदी सालाना खर्च कर देती हैं। ऐसे में अगर नया रूल लागू होता है तो इन सब पर रोक लग जाएगी।
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