….तो मंत्री जी अपना नाम ‘ स्वास्थ्य मंत्री निरोध ’ रख लें!

बात ऐसी है कि हमारे देश में न, नेता जी लोग आज कल नाम पर बड़ा कोहराम मचा रहे थे। जिसको देखो नाम बदलने पर तुला है। कोई नाम बदलने के लिए परेशान है तो कोई कह रहा है, अरे भैया रहे देयो नाम क्यों बदल रहे हो! इतिहास को ऐसे मत पलट दो। लेकिन नहीं, नाम तो बदल के रहेगा।

पहले यहीं बता दें हमें इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ता सड़क का नाम पृथ्वीराज रोड रहे चाहे ओवैसी रोड रख दो। इससे भी मन न भरे तो उसको केजरीवाल रोड लिख दो। और मन न भरे तो जब सरकार बदले तो फिर से सड़क का नाम बदल लेना। और जब घर से पारलियामेंट के लिए निकलो तो चांदनी चौक पहुंच जाना। लेकिन अभी उत्तराखंड में जो हुआ है। उस पर क्या करेंगे?

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मामला क्या है?

मामला ऐसा है कि सरकार परिवार नियोजन के लिए कंडोम बांटती है। मुफ्त का। अच्छी बात है, होना भी चाहिए। लेकिन यहां हो गया पंगा। अब पंगा का मतलब क्वालिटी से मत लेना। क्वालिटी कैसी थी हमें नहीं पता। वो तो इस्तेमाल करने वाले जाने या इलाके के डॉक्टर साहब लोग समझते होंगे!

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कल तक कंडोम जो है वो निरोध के नाम से बंटता था। और बांटता कौन है? बांटता नहीं बांटती हैं। आंगनबाड़ी की हेल्प से बंटता है। ‘आशा’ लोग जो होती हैं, उनको आयरन गोली और ओआरएस घोल सब के साथ ये भी पकड़ा दिया जाता था। वही बांटती थीं।

लेकिन नाम बदलो नाम बदलो के खेल में बेचारे निरोध का नाम भी बदल गया। एक तो ये निरोध कंडोम पता नहीं बचपन में कितना खरीद-खरीद कर होली में उसमें पानी और रंग भर कर उड़ाए होंगे। नहीं-नहीं अब नहीं। अब हम समझदार हो गए हैं। अब तो कंडोम बोलने से पहले भी अपने अगल-बगल झांक लेते हैं। कोई सुन तो नहीं रहा! तो इसी निरोध का नाम बदल के ‘आशा निरोध’ कर दिया गया। बस अब क्या हमारे देश में एक नहीं हज़ारों आशा रहती हैं। और ऊपर से ये जो ‘आशा महिला कार्यकर्ता’ लोग हैं सो अलग। इनको मिला आयरन गोली, ओआरएस घोल और कंडोम बांटने के लिए। लेकिन जैसे ही नाम पढ़े कंडोम पर ‘आशा निरोध कंडोम’, फिर क्या था भड़क गईं सब के सब।

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एक साथ सब सड़क पर उतर गईं। नहीं बांटेंगे इसको। ये क्या नाम रखा है इसका?

अब देखें क्या होता है इस केस में आगे। उत्तराखंड सरकार निकली होशियार, अभी तत्काल इस पर रोक लग गया है। लेकिन मुख्यमंत्री जी के मीडिया प्रभारी का कहना है, ये नाम-वाम बदलने और रखने का काम हमारा नहीं है। वो तो केंद्र सरकार जाने। (बीबीसी से बात करते हुए)

बीबीसी वाले इसी आशा संगठन से जुड़ी शिवा दूबे से जब पूछे कि अच्छा क्या हो जाता अगर यही बंट जाता तो इसमें क्या परेशानी हो जाती?

तो शिवा जी तुरंत भड़क जाती हैं। और लगे हाथ जवाब भी चटक के पटक देती हैं, “स्वास्थ्य मंत्री अपना नाम बदल के ‘स्वास्थ्य मंत्री निरोध’ क्यों नहीं रख लेते।” कैसा लगेगा! अब इस पर क्या ही कहा जाता!

 देखते हैं इस पर आगे क्या होगा! अब कंडोम रहेगा या नाम? या कंडोम रहेगा और नाम वापसी होगी! अजी मैं घर वापसी की बात नहीं कर रहा हूं जी! मैं तो ‘नाम वापसी’ की बात कर रहा हूं जी! आप तो खामखा गुस्से में आ जाते हैं जी!
भाइयों-बहनों!!

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