पिछले काफी समय से देशभर में तीन तलाक की प्रथा को लेकर बहस चल रही है. अब मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट इस मुद्दे पर अपना ऐतिहासिक फैसला सुनाएगा. सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुबह करीब 10.30 बजे तक सुना सकता है. तीन तलाक को लेकर 11 मई से सुप्रीम कोर्ट में शुरू हुई थी. और 18 मई को सुनवाई खत्म हुई थी और कोर्ट ने अपने आदेश को सुरक्षित रखा लिया था.
तीन तलाक पर फैसले से जुड़े लाइव अपडेट्स –
– इस मुद्दे पर कोर्ट में याचिका दायर करने वालीं शायरा बानो ने फैसला आने से पहले कहा कि मुझे उम्मीद है कि कोर्ट का फैसला मेरे हक में आएगा. जो भी फैसला होगा, हम उसका स्वागत करेंगे.
तीन तलाक के पक्ष में नहीं केंद्र
गौरतलब है कि 5 जजों की बेंच इस मुद्दे पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट में यह सुनवाई 6 दिनों तक चली थी. केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए हलफनामे में साफ किया था कि वह तीन तलाक की प्रथा को वैध नहीं मानती और इसे जारी रखने के पक्ष में नहीं है. सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने तीन तलाक को ‘दुखदायी’ प्रथा करार देते हुए न्यायालय से अनुरोध किया था कि वह इस मामले में ‘मौलिक अधिकारों के अभिभावक के रूप में कदम उठाए.’
7वें वेतन आयोग के विरोध में शिक्षक कल मनाएंगे ‘काला दिवस’
1. चीफ जस्टिस जेएस खेहर
2. जस्टिस कुरियन जोसेफ
3. जस्टिस आरएफ नरिमन
4. जस्टिस यूयू ललित
5. जस्टिस अब्दुल नज़ीर
ये थी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दलील
वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की ओर से वकील कपिल सिब्बल ने कहा था कि तीन तलाक का पिछले 1400 साल से जारी है. अगर राम का अयोध्या में जन्म होना, आस्था का विषय हो सकता है तो तीन तलाक का मुद्दा क्यों नहीं.
खत्म होनी चाहिए तीन तलाक की प्रथा
वहीं मुकुल रोहतगी ने दलील थी कि अगर सऊदी अरब, ईरान, इराक, लीबिया, मिस्र और सूडान जैसे देश तीन तलाक जैसे कानून को खत्म कर चुके हैं, तो हम क्यों नहीं कर सकते. अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने पीठ से कहा था, ‘अगर अदालत तुरंत तलाक के तरीके को निरस्त कर देती है तो हम लोगों को अलग-थलग नहीं छोड़ेंगे. हम मुस्लिम समुदाय के बीच शादी और तलाक के नियमन के लिए एक कानून लाएंगे.’
15 अगस्त को लाल किले से दिए अपने भाषण में पीएम ने कहा कि तीन तलाक के कारण कुछ महिलाओं को काफी परेशानी झेलनी पड़ रही हैं, तीन तलाक से पीड़ित बहनों ने देश में आंदोलन खड़ा किया, मीडिया ने उनकी मदद की. तीन तलाक के खिलाफ आंदोलन चलाने वाली बहनों का मैं अभिनंदन करता हूं, पूरा देश उनकी मदद करेगा.
महिला अधिकारों की लड़ाई
तीन तलाक पर केंद्र का कहना था कि यह मामला बहुसंख्यक बनाम अल्पसंख्यक का नहीं है. यह एक धर्म के भीतर महिलाओं के अधिकार की लड़ाई है. इस मामले में विधेयक लाने के लिए केंद्र को जो करना होगा वह करेगा, लेकिन सवाल ये है कि सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा? इसके बाद चीफ जस्टिस ने कहा कि अस्पृश्यता, बाल विवाह या हिंदुत्व के भीतर चल रही अन्य सामाजिक बुराइयों को सुप्रीम कोर्ट अनदेखा नहीं कर सकता है. कोर्ट इस मामले में अपनी जिम्मेदारी से इनकार नहीं कर सकता.