नई दिल्ली: भारत और रूस ने अफगानिस्तान की बॉर्डर से सटे मध्य एशियाई गणराज्यों को आतंकी संगठन तालिबान शासित काबुल से इस्लामिक कट्टरपंथ और जिहाद के फैलने से रोकने के लिए हाथ मिलाने का फैसला किया है। बुधवार को अजीत डोभाल और निकोले पेत्रुशेव के बीच भारत-रूस NSA स्तर के परामर्श में मध्य एशियाई गणराज्यों की सुरक्षा पर विचार-विमर्श किया गया। बैठक में दोनों पक्षों के खुफिया प्रमुखों ने हिस्सा लिया।
घटनाक्रम से अवगत लोगों के मुताबिक, इस बात के पुख्ता संकेत हैं कि तुर्की और पाकिस्तान गैर-सरकारी संगठनों के जरिए इन गणराज्यों में पैर जमाने का प्रयास कर रहे हैं और अंकारा के इस्लामीकरण की कोशिशों में तकनीकी सहायता प्रदान कर रहे हैं। मध्य एशियाई गणराज्य इस्लाम का पालन करते हैं, किन्तु तालिबान की तरह नहीं हैं। यह माना जाता है कि कट्टरपंथी इस्लाम फैलाने के अपने मिशन में तालिबान शासित अफगानिस्तान के इस्लामी अमीरात का इस्तेमाल, तुर्की और पाकिस्तान के समर्थन से शरीयत के तहत जीवन को बढ़ावा देने के लिए किया जा सकता है। अल कायदा से संबद्ध इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज्बेकिस्तान (IMU) के अफगानिस्तान में एक्टिव कैडर हैं और इनका उज्बेकिस्तान की फरगाना घाटी में काफी प्रभाव है।
डोभाल-पत्रुशेव की बैठक में मध्य एशियाई गणराज्यों की सुरक्षा पर मंथन हुआ, रूसी वार्ताकारों ने बताया कि इन गणराज्यों में स्थिति काबू में थी। किन्तु खतरा तब और बढ़ जाएगा, जब तालिबान, पाकिस्तान के मार्गदर्शन में अमू दरिया में अपने पंथ को फैलाने के लिए महत्वाकांक्षी हो जाएगा।