वर्ष 2003 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने अदालती आदेश के बाद अयोध्या में खोदाई के बाद एक रिपोर्ट तैयार की थी, जिसमें वहां मंदिर होने की बात पर बल दिया गया था। खोदाई एएसआइ में संयुक्त महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए डॉ. बीआर मणि के नेतृत्व में की गई थी।
उन्होंने अदालत में शपथ पत्र दिया था। उन्होंने अयोध्या पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत किया है। डॉ. बीआर मणि से वीके शुक्ला ने विस्तार से बातचीत की। पेश हैं बातचीत के मुख्य अंश..
खोदाई का मकसद क्या था?
-वर्ष 2003 में जब इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर विवादित स्थान के पास खोदाई कराई गई तो उसमें प्रमाण मिले थे। हम लोगों ने 45 फीट की गहराई तक खोदाई की थी। यह कार्य पांच माह तक चला। लगातार मंदिर से संबंधित सामग्री मिली थी। मूर्तियां मिली थीं, जिसमें टेराकोटा और अन्य प्रकार की मूर्तियां शामिल थीं। खोदाई का मकसद यही था कि पता चले कि सच्चाई क्या है? विवादित स्थल के नीचे क्या है, उसकी सही जानकारी मिल सके। एएसआइ की तरफ से इस काम के लिए मुझे लगाया गया था। मैंने वहां खोदाई कराई और शुरू से ही कुछ न कुछ मिलना शुरू हो गया था।
और क्या प्रमाण मिले?
-एएसआइ में अनुमान पर कुछ नहीं होता है। सभी कुछ प्रमाण पर आधारित होता है। विवादित स्थल के नीचे 50 खंभों के हिस्से मिले थे, जो यह सिद्ध कर रहे थे कि नीचे मंदिर था।
आपकी टीम के बाद दोबारा खोदाई क्यों नहीं कराई गई?
-उस दौरान बहुत विस्तार से खोदाई कराई गई थी। एक-एक चीज पर ध्यान केंद्रित किया गया था। अदालत को जो कुछ चाहिए था, उसे रिपोर्ट में मिल गया था। इस पूरे कार्य में दोनों समुदाय के लोग शामिल थे। पूरी खोदाई की वीडियो रिकार्डिग कराई गई थी। फोटोग्राफ रखे गए थे। अदालत संतुष्ट थी और फिर कभी खोदाई की जरूरत नहीं पड़ी।
एएसआइ के एक अन्य अधिकारी भी आपके साथ थे। उनकी क्या भूमिका थी?
-दूसरे पक्ष की आपत्ति पर अदालत के आदेश पर हरि मांझी को इस कार्य में लगाया गया था, लेकिन उनकी खोदाई में कोई भूमिका नहीं रही थी। उनका इससे पूर्व खोदाई में कोई खास अनुभव नहीं था, इसलिए इस मामले से संबंधित अन्य कार्य वह देख रहे थे। उन्होंने खोदाई में भाग लेने से मना किया था।