पेरिसः अमेरिका और उसके करीबी दोस्त सऊदी अरब के बीच पाकिस्तान के मुद्दे पर बड़ा मतभेद सामने आया है. वॉल स्ट्रीट जर्नल में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक तीन देशों चीन, सऊदी अरब और तुर्की ने पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की सूची में डालने के अमेरिकी प्रयास पर पानी फेर दिया.टेरर फंडिंग: चीन, सऊदी अरब और तुर्की ने मिलकर पाकिस्तान को बचाया

अगर प्रस्ताव पास हो जाता तो पाकिस्तान को जबरदस्त आर्थिक नुकसान झेलना पड़ता. वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिका और अरब में उसके करीबी सहयोगी सऊदी अरब के बीच कम ही मौकों पर ऐसी असहमति नजर आई है. अरब में अमेरिका, सऊदी अरब का प्रमुख सहयोगी है. हालांकि, इस बार अखबार ने लिखा है कि सऊदी ने गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल (GCC)की ओर से इस तरह का फैसला लिया है.

इसलिए मिला पाकिस्तान को सऊदी अरब का साथ

पाकिस्तान गल्फ कोऑपरेशन काउंसिल के साथ मुक्त व्यापार संधि पर समझौता आखिरी प्रक्रिया में है. इस समझौते के बाद पाकिस्तान को अरब में चावल, मीट और फल बाजार में बड़ी हिस्सेदारी मिल सकती है. अमेरिका ने पेरिस में हुई एफएटीएफ (FATF) की मीटिंग में पाकिस्तान को ग्लोबल टेरेरिस्ट फाइनेंसिंग वॉचलिस्ट में डालने का प्रस्ताव पेश किया था. एफएटीएफ अंतर्राष्ट्रीय अंतर सरकारी संस्था है जो मनी लॉन्डरिंग और आतंकी वित्तपोषण पर लगाम कसती है.

अगर पाकिस्तान इस सूची में आ जाता तो उसकी आर्थिक व्यवस्था पूरी तरह से चरमरा जाती. ऐसा होने पर अंतर्राष्ट्रीय जगत पूरी तरह पाकिस्तान से मुंह मोड़ लेता. चीन ने पाकिस्तान में ओबीओआर के जरिए अरबों का निवेश कर रखा है. इसके साथ ही वह पाकिस्तान के हितों की भी रक्षा करता है. तुर्की भी लंबे समय से पाकिस्तान का मित्र रहा है और एफएटीएफ की सूची में आने पर उसे भी नुकसान होता. पाकिस्तान के विदेश मंत्री ख्वाजा आसिफ ने कहा कि इस मीटिंग के बाद पाकिस्तान को ग्लोबल वॉचडॉग की ओर से तीन महीने की मोहलत मिली है. बता दें कि पाकिस्तान 2012 से 2015 तक एफएटीएफ (FATF)की वॉचलिस्ट में था.