शशि कपूर का नाम लेते ही उनकी रोमांटिक छवि आंखों के सामने घूम जाती है। …ओ मेरी ओ मेरी ओ मेरी शर्मिली, आओ ना तरसाओ ना…, तोता मैना की कहानी तो पुरानी पुरानी हो गई…, ले जाएंगे दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे…, बांहों में तेरी मस्ती के घेरे… और मोहब्बत बड़े काम की चीज है…जैसे कई गानों में रोमांस जताकर बॉलीवुड में खुद को रोमांटिक हीरो के तौर पर स्थापित किया।दरअसल, उनका व्यक्तित्व अपने दोनों भाइयों राज कपूर और शम्मी कपूर से अधिक आकर्षक तथा सुंदर रहा है। उनकी ओर जब कभी देखो वह हंसते-मुस्कुराते मिलते थे।
हिंदी सिनेमा के युगपुरुष कहलाए जाने वाले पृथ्वीराज कपूर के सबसे छोटे बेटे शशि कपूर का जन्म 18 मार्च 1938 को कलकत्तामें हुआ। शशि का असली नाम बलबीर राज कपूर है। बचपन से ही अपने पिता और भाईयों राज कपूर और शम्मी कपूर को अभिनय करते हुए देखकर उनका भी रुझान फिल्मों की ओर हो गया था।
वे अभिनेता बनना चाहते थे। उनके पिता चाहते तो वह शशि को लेकर फिल्म का निर्माण कर सकते थे, लेकिन उनका मानना था कि शशि कपूर संघर्ष करें और अपनी मेहनत से अभिनेता बनें।
1944 में शशि ने अपना कॅरियर पिताजी के पृथ्वी थिएटर के नाटक शकुंतला से आरम्भ किया था। शशि कपूर ने अपने सिने कॅरियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में की। चालीस के दशक में उन्होने कई फिल्मों में बाल कलाकार के रूप में काम किया।
इनमें 1948 में प्रदर्शित फिल्म ‘आग’ और 1951 में प्रदर्शित फिल्म ‘आवारा’ शामिल हैं जिसमें उन्होंने अभिनेता राजकपूर के बचपन की भूमिका निभाई।
1957 में जॉफरी कैंडल की टूरिंग नाटक कम्पनी को ज्वाइन किया और शेक्सपीयर के नाटकों में विभिन्ना रोल अदा करने लगे। इसी दौरान जॉफरी कैंडल की युवा बेटी जेनिफर कैंडल को उन्होंने नजदीक से देखा और वे प्यार की आंच में तपकर शादी के मंडप तक जा पहुंचे। कपूर खानदान में इस तरह की यह पहली शादी थी। शशि कपूर ने शादी के मामले में कपूर खानदान का ट्रेंड बदल कर पहली बार विदेशी महिला से शादी की।
शशिकपूर ने अभिनेता के रूप में सिने करियर की शुरुआत 1961 में यश चोपड़ा की फिल्म ‘धर्मपुत्र’ से की। यह फिल्म आजादी के पहले की दशा पर आचार्य चतुरसेन शास्त्री के उपन्यास पर आधारित थी।
इसमें मुस्लिम दम्पत्ति के अवैध संतान की कहानी थी। उस बच्चे का पालन-पोषण एक उदारवादी हिन्दू परिवार करता है। धर्मपुत्र का गाना तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, इंसान की औलाद है, इंसान बनेगा..खूब हिट हुआ था।
1960 में शशि कपूर ने अनेक रोमांटिक फिल्मों में काम किया। इसका एक कारण यह भी था कि चॉकलेटी हीरो का वह दौर था। चार दीवारी, मेहंदी लगी मेरे हाथ, प्रेमपत्र, मोहब्बत इसको कहते हैं, नींद हमारी ख्वाब तुम्हारे, जुआरी, कन्यादान, हसीना मान जाएगी जैसी फिल्मों में आए।
ज्यादातर फिल्में फ्लॉप रहीं और शशि कपूर उस दौर के नायक-दिलीप कुमार, देव आनंद, राज कपूर, राजेंद्र कुमार, मनोज कुमार में अपना महत्वपूर्ण स्थान नहीं बना सके। साथ ही उनकी प्रतिभा का परिचय भी बाहर तक नहीं आ पाया।
1965 शशि कपूर के सिने करियर का अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी ‘जब जब फूल खिले’ प्रदर्शित हुई। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की जबरदस्त कामयाबी ने शशि कपूर को भी स्टार के रूप में स्थापित कर दिया।
सूरज प्रकाश द्वारा निर्देशित इस फिल्म की एक रोमांटिक टेल ‘एक था गुल…’ ने सिल्वर गोल्डन जुबली मनाई थी।1965 में शशि कपूर के सिने कॅरियर की एक और सुपरहिट फिल्म ‘वक्त’ रिलीज हुई।
इस फिल्म में उनके सामने बलराज साहनी, राजकुमार और सुनील दत्त जैसे नामी सितारे थे। इसके बावजूद वह अपने अभिनय से दर्शकों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने में सफल रहे।
70 के दशक में शशि कपूर के पास 150 फिल्मों के अनुबंध थे। वह एक दिन में तीन या चार फिल्मों की शूटिंग में पहुंच जाते थे। यह देख उनके बड़े भैया राज कपूर उन्हें टैक्सी बुलाने लगे थे कि जब बुलाओ तक आ जाती है और मीटर डाउन रहता है।
ऐसी तल्ख टिप्पणी का एक कारण यह भी था कि शशि फिल्म ‘सत्यम शिवम सुन्दरम’ फिल्म तक के लिए समय नहीं निकाल पा रहे थे। शशि की व्यस्तता पर फिल्मकार मृणाल सेन भी एक टिप्पणी की थी कि शशि एक फिल्म में तौलिया लपेटकर बाथरूम में प्रवेश करते हैं और दूसरी फिल्म में पेंट के बटन लगाते बाहर निकलते हैं। आखिर यह आर्टिस्ट का कैसा रूप है?
इन फिल्मों की सफलता के बाद शशि कपूर की छवि रोमांटिक हीरो की बन गई और निर्माता- निर्देशकों ने अधिकतर फिल्मों में उनकी रूमानी छवि को भुनाया। 1965 से 1976 के बीच कामयाबी के सुनहरे दौर मे शशि कपूर ने जिन फिल्मो में काम किया, उनमें से अधिकतर हिट साबित हुईं।
रोमांटिक फिल्मों के अलावा शशि ने कुछ अपराध कथा वाली फिल्मों में भी काम किया है। फिल्म आमने-सामने (1967) तथा चोरी मेरा काम (1975) इसके उदाहरण हैं।
1970 के दशक में ही जरूरत से ज्यादा फिल्मों में काम करने के कारण शशि ने अभिनय की गुणवत्ता खो दी। ऐसी कई महत्वहीन फिल्में उन्होंने की जो उनकी फिल्मोग्राफी को कमजोर करती हैं।
अपने होम प्रोडक्शन शेक्सपीयरवाला के बैनर तले शशि कपूर ने अलग तरह का परचम फहराने की कोशिश की। देश के दिग्गज फिल्मकारों के सहयोग से उन्होंने श्याम बेनेगल के माध्यम से जूनून (1979) तथा कलयुग (1981), अपर्णा सेन के निर्देशन में 36 चौरंगी लेन (1981), गोविंद निहलानी से विजेता (1983) तथा गिरीश कर्नाड से उत्सव (1985) निर्देशित कराकर अलग प्रकार का सिनेमा रचने की कोशिश में करोड़ों रुपये गंवाए, लेकिन ये फिल्में आज भी मील का पत्थर मानी जाती हैं।
1991 में अपने मित्र अमिताभ बच्चन को लेकर उन्होंने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म ‘अजूबा’ का निर्माण और निर्देशन किया, लेकिन कमजोर पटकथा के कारण में फिल्म टिकट खिड़की पर नाकामयाब साबित हुई हालांकि यह फिल्म बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय हुई।
शशि कपूर के करियर तथा अभिनय की उम्दा फिल्म है न्यू देहली टाइम्स (1986)। इसे रोमेश शर्मा ने निर्देशित किया था। यह राजनीतिक दुश्चक्र की फिल्म है कि कैसे अखबार का मालिक अपने स्वार्थ के लिए संपादक को बलि का बकरा बनाता है।
इसके बाद शशि कपूर अपनी बढ़ती उम्र को ध्यान में रखकर अस्सी के दशक में सेकंड लीड के रोल करने लगे। अमिताभ बच्चन के साथ उनकी जोड़ी खूब जमी और दर्शकों द्वारा पसंद की गई। दीवार (1975), कभी-कभी (1976), त्रिशूल (1978), काला पत्थर (1979), ईमान धरम (1977), सुहाग (1979), दो और दो पांच (1980), शान (1980), नमक हलाल और सिलसिला जैसी यादगार फिल्में उन्होंने दी है।
भारत-सोवियत सहयोग तथा अपने निर्देशन में उनकी फिल्म अजूबा शशि के जीवन की ऐसी बड़ी गलती है कि इसने उन्हें परदे के पीछे पहुंचाकर करोड़ों के घाटे में उतार दिया।
इसके बाद वह इस्माइल मर्चेंट की भोपाल में बनी फिल्म इन कस्टडी मुहाफिज(1994) में काम किया और अपने मोटे-थुलथुल देह के गुलाम होकर घर में कैद हो गए। इसके बाद कई तरह की बीमारियों ने उन्हें जकड़ लिया। 90 के दशक में स्वास्थ्य खराब रहने के कारण शशि कपूर ने फिल्मों में काम करना लगभग बंद कर दिया।
अपने भाई शम्मी कपूर की अंतिम फिल्म ‘रॉकस्टार’ और उसके बाद रणबीर कपूर की ये जवानी है दीवानी देखने के लिए वे सिनेमाघर भी गए थे। अपने पिताजी की स्मृति को स्थाई बनाने के लिए उन्होंने मुंबई में पृथ्वी थिएटर की स्थापना की है, जो आज देश में नाटक-आंदोलन को जीवंत बनाए हुए है।
पृथ्वी थिएटर को आजकल उनकी पुत्री संजना कपूर संभाल रही हैं।
शशि कपूर एकमात्र ऐसे अभिनेता हैं, जिन्हें अंग्रेजी फिल्मों में लगातार काम करने का मौका मिला था। जेम्स आइवरी-इस्माइल मर्चेंट की जोड़ी की तीसरा कोण शशि कपूर थे।
द हाउस होल्डर (1963), शेक्सपीयरवाला (1965), बॉम्बे टॉकी (1970) तथा हीट एंड डस्ट (1983) विदेश तथा भारत में सराही गई फिल्में हैं। कोनरॉट रुक्स की फिल्म ‘सिद्धार्थ’ (1972) उनकी विवादास्पद फिल्म रही है।
इस फिल्म में न्यूड सिमी ग्रेवाल के सामने शशि कपूर खड़े हैं। यह स्टील फोटोग्राफ अंग्रेजी की दो पत्रिकाओं के कवर पर छपा था और मामला अदालत में गया था।