एक अच्छी जिंदगी तथा लम्बी आयु की कामना तो हर किसी व्यक्ति की होती है परन्तु क्या अपने कभी सोचा है की जब आपकी आत्मा आपके शरीर का साथ छोड़ देगी तब उसका क्या होगा और कब उसे दुसरा शरीर पुनः प्राप्त होगा. वेदो एवं पुराणों में इस संबंध में अनेक बातो का वर्णन आया है. वेदो में बताई गई तत्वज्ञान से संबंधित इन बातो को उपनिषद अथवा वेदांत कहते है. वेदांत के अनुसार कुछ मोको पर किसी आत्मा को शरीर तत्क्षण ही प्राप्त हो जाते है फिर वह शरीर मनुष्य का या फिर किसी अन्य जीव का. आत्मा दूसरे शरीर को तीन दिन बाद धारण करती है तभी तीजा बनाई जाती है. कुछ आत्माएं दुसरा शरीर 10 या 13 दिन बाद धारण करती है, अतः इसी कारण दसवीं व तेरहवीं मनाई जाती है. कुछ आत्माओं को सवा माह यानि 34 से 40 दिन नए शरीर धारण करने में लगते है. यदि कोई आत्मा प्रेत अथवा पितर योनि में बदल जाती है तो फिर उसके मुक्ति के लिए एक साल के बाद उसकी बरसी करी जाती है फिर 3 वर्ष बाद उसे गया छोड़ के आ जाते है. ताकि यदि आत्मा या पितर को मुक्ति ना मिल रही हो तो वह गया में ही रहे वही उसे मुक्ति की प्राप्ति होगी.
आत्मा का वास्विक स्वरूप
यह आत्मा पंचकोस में रहती तथा 4 प्रकार की स्थिति में जीती है. आत्मा के ये पंचकोस है 1 .जड़, 2. शरीर, 3. मन, 4. बुद्धि और 5. आनंद .
हमारा जो शरीर है वह जड़ चेतना में स्थित है तथा इसके चारो ओर हर चीज़ ठोस है. ये जो हम स्वास लेते है तथा छोड़ते है इसे ही प्राण कहा जाता है तथा बगैर प्राण के यह शरीर नाशवान है यह किसी काम का नहीं. शरीर तथा प्राण के ऊपर है मन.
हमारे पांचो इंद्रियों से जो हमें दिखाई, सुनाई तथा महसूस होता है उसका सीधा प्रभाव मन में जाता है. मन से ही हमें सुख तथा दुःख की अनुभूति होती है. मन से ही हम सोचते तथा समझते है. जब मनुष्य जड़ चेतना से ऊपर उठा जाता तो वह अपने जीवन के वास्तविक उद्देश्य को पा जाता है तथा उसे परंम आनंद की प्राप्ति होती है.
छांदोग्य उपनिषद के अनुसार व्यक्ति के होश के 4 स्तर हैं. पहले 3 प्राकृतिक रूप से प्राप्त हैं- जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति. चौथा स्तर प्रयासों से प्राप्त होता है जिसे तुरीय अवस्था कहते हैं. आप इन 3 के अलावा किसी अन्य तरह के अनुभव को नहीं जानते. इसी में जीते और मरते हैं. इन स्तरों की स्थिति से आपकी गति तय होती है.