हिंदू पंचांग के अनुसार, साल में दो बार छठ का महापर्व मनाया जाता है। पहला छठ पर्व चैत्र मास यानी मार्च-अप्रैल में पड़ता है और दूसरा कार्तिक मास यानी अक्टूबर-नवंबर में पड़ता है। दोनों की मास में पड़ने वाले छठ का विशेष महत्व है।
चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इसे चैती छठ कहा जाता है। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व को बिहार में बहुत ही धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पर्व महिलाएं अपनी संतान की अच्छे स्वास्थ्य और उन्नति के लिए लगातार 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखती हैं। चार दिनों तक चलने वाले इस पर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है। जिसके बाद खरना, डूबते और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। जानिए चैती छठ की तिथि, शुभ मुहूर्त, पारण का समय।
चैती छठ पूजा 2023 तिथि
पंचांग के अनुसार, चैती छठ का पर्व 25 मार्च से 28 मार्च के बीच मनाया जाएगा। जिसकी शुरुआत नहाय खाय के साथ होगी।
चैती छठ 2023 तिथियां
नहाय खाय- 25 मार्च 2023
खरना- 26 मार्च 2023
डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य (अस्ताचलगामी)- 27 मार्च 2023
उगते हुए सूर्य को अर्घ्य (उदीयमान)- 28 मार्च 2023
नहाय-खाय
चैत्र मास की चतुर्थी तिथि से चैती छठ आरंभ होता है। इसे नहाय खाय नाम से जानते हैं। इस दिन व्रत रखने वाली महिलाएं स्नान आदि करके साफ सुथरे वस्त्र धारण करती हैं और भगवान सूर्य की पूजा करती हैं। इसके साथ ही बिना लहसुन प्याज का भोजन बनाया जाता है।
खरना
चैती छठ के दूसरे दिन को खरना कहा जाता है। छठ का ये दिन काफी खास होता है। क्योंकि इस दिन के साथ ही महिलाएं पूरे 36 घंटे का निर्जला व्रत रखती हैं। इसके साथ ही भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के लिए प्रसाद बनाना शुरू करती हैं।शाम की पूजा के लिए पीतल या फिर मिट्टी के बर्तन में गुड़ की खीर बनाना शुभ माना जाता है। इस प्रसाद को नए चूल्हे में गोबर के उपले या फिर आम की लकड़ी में ही बनाया जाता है। इसके बाद रात को केले के पत्ते में इस प्रसाद को रखकर सूर्य के साथ-साथ चंद्रमा को भोग लगाया जाता है। खरना के दिन ही छठ का प्रसाद ठेकुआ भी बनाया जाता है। अर्घ्य देने के बाद महिलाएं प्रसाद ग्रहण करती हैं।
डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य
छठ पर्व के तीसरे दिन महिलाएं डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती है। इसलिए 27 माह की शाम को सूर्यदेव को अर्घ्य दिया जाएगा।
उगते हुए सूर्य को अर्घ्य
28 मार्च को महिलाएं उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं। इसके साथ ही छठ महापर्व का समापन होता है और महिलाएं व्रत का पारण करती हैं।