दुनिया के हर इंसान के मन में कभी न कभी यह प्रश्र अवश्य उठता है कि आखिर जीवन और मृत्यु का रहस्य क्या है? आखिर यह मृत्यु है क्या? आख़िर क्या होता है मरने के बाद?आत्मा की उत्पत्ति ईश्वर के आध्यात्मिक लोकों में हुई है। यह भौतिक जगत से श्रेष्ठ है। व्यक्ति के जीवन का आरम्भ तब होता है जब माता द्वारा गर्भ धारण करते समय आध्यात्मिक लोक से आई आत्मा का भ्रुण के साथ सयोंग होता है। लकिन यह सम्बन्ध भौतिक नहीं होता; आत्मा न तो शरीर में प्रवेश करती है न ही इसे छोड़ती है और न ही कोई जगह घेरती है। आत्मा भौतिक जगत की वस्तु नही है तथा इसका शरीर के साथ सम्बन्ध वैसा ही होता है जैसा प्रकाश का उस दर्पण के साथ जो इसे प्रतिबिम्बित करता है। दर्पण में दिखायी देने वाला प्रकाश उसके अंदर न होकर एक बाहरी स्रोत से आता है। इसी प्रकार आत्मा शरीर के अंदर नहीं होती। शरीर और आत्मा के बीच एक विशेष सम्बन्ध होता है, दोनों के संयोग से मानव का सृजन होता है।
इन दोनों के बीच बहुत विशेष सम्बन्ध होता है। यह सम्बन्ध केवल एक नाशवान जीवन की अवधि तक ही सीमित रहता है। जब यह सम्बन्ध समाप्त हो जाता है तो दोनों अपने उदगम स्थान को वापस चले जाते है अर्थात् शरीर धूल जगत में और आत्मा ईश्वर के आध्यात्मिक लोकों में। आत्मा का शरीर से अलग होना मृत्यु होती है। आत्मा शरीर से पृथक होने के बाद अनंत काल तक प्रगति करती रहती है।
ईश्वरीय अवतार बहाउल्लाह कहते है:
“तुम इस सत्य को जानो कि शरीर से अलग होने पर भी आत्मा तब तक प्रगति करती जाएगी जब तक वह परमात्मा से एक ऐसी अवस्था में मिलन को प्राप्त नहीं हो लेती जिसे सदियों की क्रांतियाँ और दुनिया के परिवर्तन और संयोग भी नहीं बदल सकते। यह तब तक अमर रहेगी जब तक प्रभु का साम्राज्य, उसकी सार्वभौमिकता और उसकी शक्ति है। यह प्रभु के चिन्हों और गुणों को प्रकट करेगी और उसकी प्रेममयी कृपा के आशीषों का संवहन करेगी।
गीता के उपदेशों में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है:
नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावक: कह कर कृष्ण ने आत्मा को अजर-अमर, नित्य और अविनाशी बताया हैं ।
बहाउल्लाह कहते है:
तुम यह जानो कि की प्रत्येक समझदार व्यक्ति, अगर सदैव पवित्र और निर्दोष बना रहा है तो इन शब्दों को अवश्य ही याद रखेगा “सत्य ही हम ईश्वर के है और उसे ही समर्पित हो जायेंगे। मनुष्य की शारीरिक मृत्यु के रहस्यों और उसकी अनंत यात्रा को प्रकट नहीं किया गया है। ईश्वर के न्याय की सौगंध यदि इन्हें प्रकट कर दिया जाये तो कुछ लोगों को उनसे ऐसा भय और दुःख उत्पन्न होगा की वे खत्म हो जायेंगे, जबकी अन्य लोग ऐसे आनंद से भर उठेंगे की मृत्यु की कामना करने लगेंगे और निरन्तर महाशक्तिशाली प्रभु से प्रार्थना करेंगे की शीघ्र ही उनको अंत की प्राप्ति हो ताकि इस महाआनंद में वे विलीन हो सकें।”
मनुष्य की उत्पत्ति और उसकी उत्पत्ति का उदेश्य:
मनुष्य की उत्पत्ति माँ के गर्भ में शरीर और आत्मा के मिलन से हुई है । वहाँ उस ने मानव-अस्तित्व की वास्तविकता के लिए क्षमता और सम्पन्नता प्राप्त की। माँ के गर्भ में मनुष्य ने नाक, कान, हाथ, पाँव यहाँ तक कि पूरा शरीर का विकास हुआ है । वहाँ इन अंगो की कोई आवश्यकता नहीं थी क्योंकी ना ही वहां हाथ से काम करना था ना ही पाँव से चलना था मगर उनका वहां विकास होने के पिछे एक उद्देश्य था। माँ के गर्भ से इस दुनिया में आना था और इन सभी अंगो और शरीर की आवश्यकता इस दुनिया में होगी। इसलिए माँ के गर्भ में इनका विकास हुआ, इसी प्रकार इस दुनिया में आने का एक उद्देश्य है।
मनुष्य के जीवन का उदेश्य:
बहाउल्लाह कहते है:
“मनुष्य अपने स्रष्टा को जान सके और उसका सानिध्य प्राप्त कर सके। इस सर्वोत्तम तथा परम श्रेष्ठ उद्देश्य की पुष्टि सभी धार्मिक ग्रंथो में की गई है। जिस किसी ने भी दिव्य मार्गदर्शन के दिवास्रोत प्रभु को पहचाना है और उसके पावन दरबार में पदार्पण किया है वह प्रभु के निकट आया है उसने प्रभु के अस्तित्व को पहचाना है। जो कोई भी उसे पहचानने में असफल रहा है, वह ईश्वर से दूर होने का दुःख उठायेगा।”
मनुष्य भौतिकता में इतना डूबा होता है कि उसे अपने मूल उदेश्य याद नहीं रहता। वह यहाँ ऐसे धन सम्पदा इकठ्ठा करना शुरू कर देता है जैसे उसे मृत्यु ही नहीं आनी है, ईश्वर ने उसे हमेशा -हमेशा के लिए पृथ्वी पर भेज दिया है। शरीर के लिए मनुष्य बहुत कुछ करता है जैसे बीमार हो जाये तो अच्छे से अच्छे डॉक्टर को दिखाना , गन्दा हो जाये तो अच्छे से अच्छे साबुन, शैम्पू से नहाना , दांतो के लिए बढ़िया से बढ़िया टूथपेस्ट और ब्रश का उपयोग करना आदि है। मगर मनुष्य यह भूल जाता है की उसकी आत्मा भी है जिसका भी उसे ख्याल रखना चाहिए जो की अजर -अमर है। आत्मा का भोजन है प्रार्थना। इसलिए हमे रोज़ सुबह -शाम प्रार्थना व पवित्र ग्रन्थो में से ईश्वर के शब्दों का पाठ करना चाहिए। जिस से हमारी आत्मा स्वस्थ रहे व ईश्वरीय लोक में हमारी आत्मा स्वस्थ लौटे।
बहाउल्लाह कहते है:
प्रत्येक सुबह शाम तुम ईश्वर के श्लोकों का सस्वर पाठ करो।