वॉशिंगटन। अमेरिका के एक विशेषज्ञ ने कहा है कि भारत दक्षिण एशिया में चीन की महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव (बीआरआई) पर कुछ हद तक लगाम लगाने में सफल हुआ है. भारत दुनिया का एकमात्र बड़ा देश है जिसने चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी बीआरआई परियोजना का विरोध किया है. 
बीआरआई में एशियाई देशों, अफ्रीका, चीन और यूरोप के बीच संपर्क सुधारने और सहयोग बढ़ाने पर ध्यान देने की बात कही गई है. अमेरिका के जर्मन मार्शल फंड के एंड्रयू स्मॉल ने कहा कि भारत ने दक्षिण एशिया में बेल्ट एंड रोड इनीशियेटिव पर कुछ हद तक लगाम लगाई है. भारत ने ओबीओआर यानी सिल्क रोड परियोजना की फ्लैगशिप योजना सीपीईसी को लेकर संप्रभुता संबंधी चिंताओं की वजह से पिछले साल मई में बेल्ट एंड रोड फोरम (बीआरएफ) में भाग नहीं लिया था.
चुनौती देने वाले मोदी अकेले नेता
नवंबर 2017 में चीन मामलों के अमेरिकी एक्सपर्ट ने कहा था कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के ‘बार्डर एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआई) के खिलाफ आवाज उठाने वाले अकेले विश्व नेता हैं जबकि अमेरिका ने भी इस महत्वाकांक्षी परियोजना पर लगातार चुप्पी साध रखी है. कांग्रेस की सुनवाई के दौरान प्रतिष्ठित थिंक टैंक हडसन इंस्टीट्यूट में चीनी रणनीति पर केंद्र के निदेशक माइकल पिल्सबरी ने सांसदों से कहा कि चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग की महत्वाकांक्षी परियोजना के खिलाफ मोदी और उनकी टीम ने हमेशा खुलकर अपनी बात रखी है.
भारत का रुख साफ
भारत पहले की साफ कर चुका है कि ऐसी परियोजना को स्वीकार नहीं कर सकता जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन करता हो. भारत की ‘चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे’ (सीपीईसी) पर गहरी आपत्ति है. सीपीईसी चीन की विशिष्ट ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल (बीआरआई) की महत्वपूर्ण परियोजना है. सीपीईसी गिलगिट और पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (पीओके) के बालटिस्तान से होकर गुजरता है. भारत पीओके सहित समूचे जम्मू कश्मीर राज्य को अपना अखंड हिस्सा मानता है. भारत ने हमेशा कहा है कि संपर्क पहल इस तरह की होनी चाहिए जो संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे.
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