निनोंग का कहना है कि नदी का पानी इस सुरंग की वजह से बेहद गंदा हो गया है, जिसकी अहम वजह चीन की ओर से किया जा रहा निर्माणकार्य है। उन्होंने कहा कि इससे पहले कभी नदी को इन हालातों का सामना नहीं करना पड़ा है और ये चीन के हाथों की हो रहा है।
बता दें कि डोकलाम विवाद के बाद ये मुद्दा भारत और चीन के बीच फिर विवाद का मुद्दा बन सकता है, क्योंकि इससे हिमालयी क्षेत्र पर प्रभाव पड़ सकता है। प्रस्तावित सुरंग जो दुनिया के सबसे ऊंचे पठार से होकर गुजरेगी, विभिन्न खंडों में झरनों से जुड़ेगी। यह सुरंग चीन के सबसे बड़े प्रशासनिक खंड जो व्यापक रूप से मरुस्थल और सूखे घास का मैदान है, को पानी उपलब्ध कराएगी।
यह पानी दक्षिण तिब्बत में यारलंग सांगपो नदी से मुड़कर शिनचियांग के तकलमाकन मरुस्थल में पहुंचेगा। यारलुंग सांगपो नदी भारत में ब्रह्मपुत्र के नाम से जानी जाती है।
मालूम हो कि भारत पहले ही ब्रह्मपुत्र नदी पर बनाए जाने वाले बांधों को लेकर चीन के समक्ष चिंता जता चुका है। वहीं चीन भारत और बांग्लादेश को यह आश्वासन दे चुका है कि उसके बांध नदी परियोजना को संचालित करने के लिए हैं और इन्हें जल संग्रह करने को लिए डिजाइन नहीं किया गया है। भारत और बांग्लादेश दोनों को ब्रह्मपुत्र से पानी मिलता है।
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