चीन और पाकिस्तान बार्डर की सामरिक महत्व की सड़कों के सामने बाधाओं के पहाड़ खड़े हैं। साढ़े चार महीने तक चली कश्मीर हिंसा से सीमा सड़क संगठन की सात महत्वपूर्ण सड़कों के निर्माण कार्य पर ब्रेक लग गया है। इन सड़कों के निर्माण से आतंकवाद पर भी कुछ हद तक काबू पाना संभव हो सकता है।सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, त्रिुपरा और सिक्किम में अधिकार प्राप्त कमेटी का गठन हो चुका है। इंडो चीन बार्डर रोड्स ( आईसीबीआर) की 73 सड़कों के निर्माण को स्वीकृति दी गई है। चीन सीमा पर इन सड़कों की लंबाई 3417 किलोमीटर होगी। इनमें से 61 सड़कों का कार्य सीमा सड़क संगठन को सौंपा गया है। अब तक सिर्फ 707.24 किलोमीटर लंबाई की 22 सड़कों का ही काम पूरा हो पाया है।
वन और पर्यावरण मंजूरी में देरी, मार्ग की कठोर चट्टानें, बर्फवारी के कारण सीमित कार्य अवधि, निर्माण सामग्री पहुंचाने में दिक्कतें और भूमि अधिग्रहण में विलंब जैसे कई पेंच हैं, जो सड़क निर्माण में बाधाएं डाल रहे हैं।
आईसीबीआर ने अब 2020 तक 39 सड़कों का काम पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। सूत्रों के मुताबिक सीमा सड़क संगठन में स्टाफ कमी को आउटसोर्स से पूरा करने की अनुमति दी गई है। अधिकारियों के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकारों में बढ़ोतरी भी की गई है।
आईसीबीआर ने अब 2020 तक 39 सड़कों का काम पूरा करने का लक्ष्य तय किया है। सूत्रों के मुताबिक सीमा सड़क संगठन में स्टाफ कमी को आउटसोर्स से पूरा करने की अनुमति दी गई है। अधिकारियों के वित्तीय और प्रशासनिक अधिकारों में बढ़ोतरी भी की गई है।
कश्मीर हिंसा के कारण किश्तवाड़-सिन्थन पास- अनंतनाग को जोड़ने वाली सड़क मंझधार में लटक गई। इसी तरह श्रीनगर-सोनमर्ग-गुमरी और श्रीनगर- बारामुला-उड़ी सड़क पर भी असर पड़ा। उड़ी में सेना का कैंप आतंकवादी हमले झेल चुका है।
टंगधार और गुरेज घुसपैठ के लिए बदनाम रहे हैं। इस क्षेत्र की दो सड़कें चौकीबल-टंगधार-चमकोट और बांदीपोरा -गुरेज का निर्माण भी हिंसा के कारण प्रभावित हुआ। महुरा-बाज और हाजीबल-जैड गली भी चपेट में आ गई। सेना की खास बटालियन ने रात में भी काम जारी रखने की कोशिश की, लेकिन, हिंसा का असर निर्माण गति के प्रभावित कर गया।
टंगधार और गुरेज घुसपैठ के लिए बदनाम रहे हैं। इस क्षेत्र की दो सड़कें चौकीबल-टंगधार-चमकोट और बांदीपोरा -गुरेज का निर्माण भी हिंसा के कारण प्रभावित हुआ। महुरा-बाज और हाजीबल-जैड गली भी चपेट में आ गई। सेना की खास बटालियन ने रात में भी काम जारी रखने की कोशिश की, लेकिन, हिंसा का असर निर्माण गति के प्रभावित कर गया।
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