लाइव हलचल डेस्क:अब राजनयिक नीतियां, आर्थिक अपरिहार्यताओं के तले सांस लेने लगी हैं। इसी के दायरे में इन दिनों नेपाल को चीन से संबंध बढ़ाने के तौर पर देखा जा सकता है। हालांकि ऐसे ही परिप्रेक्ष्य के साथ नेपाल का संबंध भारत से भी है और कई मायनों में कहीं अधिक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक भी। चीन के छह दिन के दौरे पर गए नेपाल के प्रधानमंत्री केपी ओली और चीन के बीच दोनों देशों को जोड़ने के लिए सड़क, रेल और हवाई मार्ग बनाने के बारे में समझौता हुआ और यह भरोसा जताया गया कि इससे एक नए युग की शुरुआत होगी। इतना ही नहीं ऑप्टिकल फाइबर नेटवर्क से भी दोनों देशों के संबंध में सहमति हुई है।
गौरतलब है कि ओली का चीन जाना कुछ हद तक भारत के लिए चिंता का विषय है। दरअसल चीन की नजर हमेशा नेपाल पर रही है और जब-जब नेपाल में ओली की सत्ता हुई
तब-तब यह चिंता तुलनात्मक बढ़े हुए दर के साथ रही है। ओली के दौरे से वन बेल्ट, वन रोड़ के तहत राजनीतिक साझेदारी बढ़ सकती हैं जिसका संदर्भ चीनी विदेश मंत्रालय दर्शा रहा है। जाहिर है यह भारत के लिए सही नहीं है। इस परियोजना को लेकर भारत का विरोध आज भी कायम है। ऐसे दौरों एवं मुलाकातों से चीन और नेपाल के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान और मेल-जोल भी गहरे होंगे जिसका कूटनीतिक लाभ चीन अधिक उठाएगा और नेपाल का उपयोग वह कूटनीतिक संतुलन में भारत के प्रति कर सकता है।
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