ज्योतिष शास्त्र अनुसार युवक व युवती की जन्मकुंडली के अनुसार राशि, लग्न, नक्षत्र व गण मिलान किये जाते हैं किंतु परिवार के किसी भी सदस्य से उनका मिलान नहीं किया जाता है। इससे परिणामस्वरूप परिवार से अनबन की स्थिति के साथ-साथ पत्नी में भी टकराव होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा में सिर एवं उत्तर में पैर करके सोना शुभ माना गया है, क्योंकि मानव का शरीर भी एक छोटे चुंबक की तरह कार्य करता है। शरीर का उत्तरी ध्रुव भौगोलिक दक्षिण और शरीर के दक्षिण ध्रुव का भौगोलिक उत्तर की ओर होना मनुष्य की चिंतन प्रणाली को नियंत्रित करता है।
मस्तिष्क एवं शरीर की बहुत सारी रश्मियां विद्युत चुंबकीय प्रभाव से नियंत्रित होती हैं, अतः दक्षिण में सिर करके सोना पृथ्वी के विद्युत चुंबकीय प्रभाव से समन्वय बैठाना है। इससे स्वभाव में गंभीरता आती है एवं व्यक्ति में स्थित बुद्धि व विकास संबंधी विकास की योजनाएं पैदा होती हैं। दक्षिण दिशा आत्मविश्वास में वृद्धि करता है। दक्षिण दिशा में स्थित व्यक्ति नेतृत्व क्षमता से युक्त हो जाता है। यदि दक्षिण में सिर करके सोने की सुविधा नहीं हो तो पूर्व में सिर करके तथा पश्चिम में पैर करके शयन किया जा सकता है। गृह स्वामी या स्वामिनी अथवा कोई अन्य स्त्री यदि दक्षिण दिशा में निवास करती है तो वह प्रभावशाली हो जाती है। अतः स्पष्ट है कि परिवार के मुखिया स्त्री को दक्षिण दिशा में निवास करना चाहिये। कनिष्ठ स्त्रियां देवरानी या बहू को दक्षिण-पश्चिम में शयन नहीं करना चाहिए। जो स्त्रियां अग्नि कोण में शयन-निवास करती हैं उनका दक्षिण दिशा में शयन करने वाली स्त्रियों से मतभेद रहता है। अग्नि कोण में युवक-युवती अल्प समय के लिए शयन कर सकते हैं। यह कोण अध्ययन एवं शोध के लिये शुभ है।
भवन के वायव्य कोण में जो स्त्रियां शयन-निवास करती हैं उनके मन में उच्चाटन का भाव आने लगता है एवं वो अपने अलग से घर बसाने के सपने देखने लगती हैं, अतः इस स्थान पर अविवाहित कन्याओं का शयन करना शुभ होता है। नई दुल्हन या बहू को यह स्थान शयन हेतु कदापि उपयोग में नहीं लेने देना चाहिये। यदि पुरुष वायव्य कोण में अधिक समय शयन करता है तो उसका मन परिवार से उचट जाता है एवं अलग होने की सोचता है। यदि परिवार में दो या दो से अधिक बहुएं हों तो वास्तु शास्त्र के नियमों के अनुसार शयन-निवास का चयन कर स्नेह, प्रेम व तालमेल बनाये रखा जा सकता है। दक्षिण-पश्चिम भाग में सास को सोना चाहिये, अगर सास नहीं हो तो परिवार की बड़ी बहू को सोना चाहिये। गृहस्थ-सांसारिक मामलों में पत्नी को पति की बायीं ओर सोना चाहिये। परिवार की मुखिया सास या बड़ी बहू को पूर्व या ईशान कोण में शयन नहीं करना चाहिये, वृद्ध अवस्था-अशक्त हो जाने की स्थिति में ईशान कोण में शयन किया जा सकता है। किंतु वृद्धावस्था-अशक्त हो जाने पर अग्निकोण में शयन नहीं करना चाहिये।
अग्निकोण में अग्नि कार्य से स्त्रियों की ऊर्जा का सही परिपाक हो जाता है, अग्नि होत्र कर्म भी शुभ है। अग्निकोण में यदि स्त्रियां तीन घंटा व्यतीत कर पाक कर्म करें तो उनका जीवन उन्नत होता है एवं व्यंजन स्वादिष्ट होते हैं। शयनकक्ष का बिस्तर अगर डबल बेड हो एवं उसमें गद्दे अलग-अलग हों तथा पति-पत्नी अलग-अलग गद्दे पर सोते हों तो उनके बीच तनाव की स्थिति पैदा हो जाती है एवं आगे चलकर अलग हो जाते हैं, अतःशयनकक्ष में ऐसा बिस्तर होना चाहिये जिसमें गद्दा एक हो। गृह निवास उत्तराभिमुख मकानों में उत्तर दिशा से ईशान कोण पर्यन्त, पूर्वाभिमुख मकानों में पूर्व दिशा मध्य से वायव्य कोण पर्यन्त, यदि बाह्य द्वार न रखा जाये तो स्त्रियों में अधिक समन्वय व प्रेम होता है।