गुजरात मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल का इस्तीफा, अमित शाह ने आगे की कार्रवाई के लिए संसदीय बोर्ड को भेजा

गुजरात की सीएम आनंदीबेन पटेल ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. आनंदीबेन ने फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिये कहा है कि वो मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी से हटना चाहती हैं. ऐसा कहा जा रहा है कि आनंदीबेन को 15 अगस्त के बाद किसी राज्य के गवर्नर की जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है. सूत्रों के मुताबिक आनंदीबेन के उत्तराधि‍कारी के तौर पर नितिन पटेल और सौरभ पटेल के नामों की चर्चा हो रही है.

साल 2014 में नरेंद्र मोदी जब देश के पीएम बने तो आनंदीबेन पटेल को गुजरात की सत्ता सौंप गए. लेकिन दो साल बीतते-बीतते ऐसा आखिर क्या हुआ कि गुजरात की पहली महिला होने का गौरव हासिल करने वाली आनंदीबेन को मुख्यमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी.

आनंदीबेन ने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि इस साल नवंबर में वह 75 साल की हो जाएंगी. अगले साल 2017 के आखिर में गुजरात में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. साथ ही हर दो साल पर होने वाले वाईब्रेंट गुजरात समिट भी जनवरी 2017 में ही होने वाला है. इसलिए वह चाहती हैं कि नए आने वाले मुख्यमंत्री को इन सबकी तैयारी का पूरा वक्त मिले.

आनंदीबेन के दामन पर छींटे

मई 2014 से अब तक की घटनाओं पर सरसरी नजर डाली जाए, तो एक के बाद एक ऐसी घटनाएं गुजरात में होती गईं, जिनसे आनंदीबेन की नेतृत्व क्षमता पर सवालिया निशान खड़े हुए. इन घटनाओं से 1998 से सूबे की सत्ता पर काबिज बीजेपी की किरकिरी तो हुई ही, केंद्र सरकार के मुखि‍या के तौर पर पीएम मोदी को भी काफी फजीहत झेलनी पड़ी.

आइए, नजर डालते हैं ऐसी घटनाओं पर जिनकी वजह से आनंदीबेन सहित पार्टी की खूब किरकिरी हुई…
1. पटेल-पाटीदार आंदोलन
आनंदीबेन को सत्ता संभाले अभी सालभर ही बीते थे कि अगस्त 2015 में राज्य में बड़ा आंदोलन हुआ. आरक्षण की मांग को लेकर हार्दिक पटेल की अगुवाई में शुरू हुए इस आंदोलन ने विशाल रूप ले लिया. राज्य में तमाम जगहों पर हिंसा हुई, बड़े पैमाने पर सरकारी संपत्त‍ि को नुकसान पहुंचा. इस आंदोलन से साफ हो गया कि आनंदीबेन की प्रशासन पर पकड़ मजबूत नहीं है. माना जाता है कि इन आंदोलनों की वजह से पार्टी को बिहार विधानसभा चुनाव में खामियाजा भुगतना पड़ा.

2. भ्रष्टाचार के आरोप
राज्य में विपक्षी कांग्रेस ने आरोप लगाया कि नरेंद्र मोदी के सीएम रहने के दौरान आनंदीबेन ने भ्रष्टाचार किया, जब वो मोदी कैबिनेट में राजस्व मंत्री थीं. कांग्रेस का आरोप है कि गुजरात सरकार ने 2010 में मोदी के मुख्यमंत्री रहते आनंदीबेन की बेटी अनार पटेल के बिजनेस पार्टनर को औने-पौने दाम पर जमीन दी थी.

आरोप लगे कि गिर लायन सैंक्चुरी के पास मौजूद 125 करोड़ रुपये की जमीन को महज डेढ़ करोड़ में बेच दिया गया. सैंक्चुरी के पास कुल 400 एकड़ जमीन में से 250 एकड़ जमीन को 60 हजार रुपये प्रति एकड़ के रेट पर बेचा गया, जबकि उस समय जमीन का सरकारी रेट 50 लाख रुपये प्रति एकड़ था.

3. बेटे-बेटियों ने भी डुबाया
बतौर सीएम मोदी के कार्यकाल से आनंदीबेन के कार्यकाल की तुलना करें, तो इस दौरान आनंदीबेन पर भाई-भतीजावाद के भी आरोप लगे. आरोप लगे कि आनंदीबेन की बेटी अनार पटेल और बेटे श्वेतांक का प्रशासन के काम में दखल रहता है. ऐसी धारणा बनी कि आनंदीबेन की संतानें सरकार के कामकाज में दखल देती हैं. ऐसे आरोप लगने के बाद पीएम मोदी ने भी आनंदीबेन को चेतावनी दी थी कि वो अपनी इमेज सुधारें.

4. पंचायत चुनावों में हार
दिसंबर 2015 में राज्य में स्थानीय निकाय के चुनावों में बीजेपी को भारी नुकसान हुआ और सूबे से जनाधार खो रही कांग्रेस को फायदा हुआ. नगर निगम चुनावों में हालांकि बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा और नगरपालिका के 56 सीटों में से 40 पर पार्टी को जीत हासिल हुई, लेकिन जिला पंचायत चुनाव की 31 सीटों में से कांग्रेस ने अप्रत्याशित 21 सीटों पर कब्जा जमाया, जबकि बीजेपी को सिर्फ 9 सीटों से संतोष करना पड़ा.

पिछली बार जिला पंचायत की 31 सीटों में से बीजेपी ने 30 पर जीत हासिल की थी और कांग्रेस महज 1 पर सिमट गई थी. बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मिली शि‍कस्त के बाद इन चुनाव के नतीजे पार्टी आलाकमान के लिए बेहद दुखदायी थे.

5. ऊना विवाद
गुजरात समेत बीजेपी शासित कई राज्यों में गौरक्षा के नाम पर अत्याचार की घटनाएं हाल में सामने आईं हैं. लेकिन राज्य में ऊना में दलितों की पिटाई के मामले ने खासा तूल पकड़ लिया. इन घटनाओं से विपक्षी कांग्रेस को बीजेपी पर हमला करने का मौका तो मिला ही, दिल्ली में सत्तारुढ़ आम आदमी पार्टी ने भी मोदी पर निशाना साधने का मौका हाथ से जाने नहीं दिया. यूपी की पूर्व सीएम मायावती सहित तमाम दलित संगठन भी इस घटना के विरोध में उतर पड़े. यूपी में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं, ऐसे में पार्टी को आशंका है कि ऐसी घटनाओं से दलित वोट बैंक खिसक सकता है. अगर ऐसा होता है, तो पार्टी को यूपी चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है क्योंकि सूबे में दलित वोट बैंक बेहद मायने रखता है.

 

 -साभार

आजतक

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