बता दें वानकर ने गुरुवार को पाटन कलेक्टर कार्यालय के बाहर खुद को आग लगा ली थी. अगले दिन अहमदाबाद के एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई. वह एक भूमिहीन दलित खेतिहर मजदूर हेमाबेन वानकर के लिए लड़ रहा था. हेमाबेन ने आरोप लगाया था कि अधिकारियों ने साल 2013 में उससे 22,236 रूपये तो लिए लेकिन उसे भूखंड नहीं दिया. वहीं शनिवार को वानकर के परिजनों द्वारा शव लेने से मना करने के बाद गुजरात सरकार ने उनकी सभी मागों को मान लिया है. परिजनों का कहना है कि जब तक उनकी मांगे पूरी नहीं हो जाती वे शव नहीं लेंगे.