जॉली भाई पिछले एक दशक से गांधी जी के पुश्तैनी घर ‘काबा गांधी ना डेलो’ की देखभाल कर रहे हैं। गांधी जी के पिता करमचंद गांधी को काबा का गांधी भी कहा जाता था और बचपन के कई साल गांधी जी ने अपने परिवार के साथ इसी घर में गुजारे थे।
अब बेशक इसे संग्रहालय में तब्दील कर दिया गया हो, लेकिन यहां आने का वक्त किसी नेता के पास नहीं है। जॉली भाई बताते हैं कि जब से वो यहां हैं भाजपा का कोई भी नेता और मंत्री यहां नहीं आया।
गांधी जी के नाम पर राजनीति करने वाले अब पटेल के नाम पर चुनाव लड़ते हैं, और गांधी जी उनके लिए हाशिए पर चले गए हैं।
यहां तक कि राजकोट के हो कर भी सीएम विजय रूपाणी तक यहां नहीं आते। राजकोट के घने काडिया बाजार में एक पतली सी गली में यह घर है। इसे गांधी जी के पिता करमचंद गांधी ने खरीदा था.. गांधी जी का परिवार यहां 1881 से 1920 तक रहा।
जॉली भाई बताते हैं कि गांधी जी के जी के शुरुआती दिनों में उनकी माली हालत ठीक नहीं थी, आजादी आंदोलन मं भी वो लगातार सक्रिय थे। लेकिन राजकोट में उनका परिवार रहता था।
यहीं गांधी जी से लोग मिलने आते थे और छोटे से एक कमरे में उनके साथ बातचीत करते थे। भीतर के बरामदे से जुड़े तीन कमरों में उनके सभी भाई-बहन रहते थे जबकि बाहर के अहाते के पास उनका अपना कमरा था।
अब यह कमरा टूट चुका है। हालांकि संग्रहालय बन जाने के बाद यहां के हर कमरे में उनकी तस्वीरें हैं, उस दौर के तमाम नेताओं के साथ मिलते जुलते-जुलते हुए गांधी जी हैं,कस्तूरबा हैं, उनकी हस्तलिपि है और इतिहास के वो पल हैं जिनसे गांधी गुजरे।
इस बाजार में बंधेज के काम वाले कपड़े बेचने वाले जिग्नेश बताते हैं कि चुनावी सभाएं इस इलाके में नहीं होती, लेकिन जब चुनाव प्रचार तेज होता है तो उम्मीदवार और उनके समर्थक दिखते हैं।
यहीं कांताबेन भी रहती हैं, बताती हैं चुनाव के वक्त नेता लोग गांधी जी के इस घर के आसपास की गलियों में वोट मांगने आते हैं।अभी तक कोई नहीं आया लेकिन अब प्रचार जोर पकड़ेगा तो आएंगे ही।
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