नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री का पद संभालते ही नेबरहुड फर्स्ट की नीति का ऐलान किया था, लेकिन पिछले करीब चार साल में ज्यादातर पड़ोसी देश भारत से ज्यादा चीन के करीब दिख रहे हैं। पाकिस्तान और चीन तो एक दूसरे को हर मौसम का दोस्त मानते ही हैं, दक्षिण एशिया में भूटान को छोड़कर बाकी सभी देशों पर चीन का प्रभाव हाल में काफी बढ़ चुका है। एक तरफ पड़ोसी देशों में भारत के सहायता प्रॉजेक्टों की रफ्तार काफी धीमी रही है, दूसरी तरफ चीन धनबल के जरिए उनकी मदद करने में काफी आगे निकल गया है। दक्षिण एशिया देशों के संगठन सार्क में भारत ने पाकिस्तान को राजनयिक तौर पर अलग-थलग करने में सफलता पाई थी। भारत ने इस संगठन के बाकी देशों से बंगाल की खाड़ी से जुड़े देशों के गठबंधन बिम्सटेक के जरिए संबंध आगे बढ़ाने की कोशिश की। भारत ने पड़ोसी देशों में इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास के लिए कई प्रॉजेक्टों को तेज करने की कोशिश भी की है, लेकिन चीन ने जब महत्वाकांक्षी कनेक्टिविटी प्रॉजेक्ट वन बेल्ट वन रोड के लिए सम्मेलन का आयोजन किया तो इसका लाभ पाने के लिए भूटान को छोड़कर सभी पड़ोसी देश आतुर दिखे। इस प्रॉजेक्ट को भारत अपनी संप्रभुता के लिए खतरे के तौर पर देखता है।
हाल में भारत में सबसे बड़ा झटका माना गया मालदीव और चीन के बीच फ्री ट्रेड अग्रीमेंट को, जबकि भारत में मालदीव के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था। पाकिस्तान के बाद मालदीव दक्षिण एशिया में दूसरा ऐसा देश बन गया है, जिसने चीन के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट किया है। मालदीव हिंद महासागर के अहम कारोबारी रूट पर स्थित है और वहां चीन के कई बड़े प्रॉजेक्ट चल रहे हैं। मालदीव को कर्ज का तीन-चौथाई हिस्सा चीन के हाथों मिला है। फ्री ट्रेड अग्रीमेंट के साथ ही मालदीव की सरकार ने वहां के लोकल काउंसिलर्स के भारतीय राजदूत से मिलने पर पाबंदी लगा दी है। यही नहीं मालदीव के एक सरकार समर्थक अखबार में भारत की जमकर आलोचना की गई।
लंका को कर्ज
चीन अब श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश के साथ भी फ्री ट्रेड अग्रीमेंट की तैयारी में है। श्रीलंका ने सामरिक रूप से अहम हंबनटोटा पोर्ट को 99 साल की लीज पर चीन की सरकारी कंपनी को दे दिया है। हालांकि श्रीलंका की मौजूदा सरकार को चीन के मुकाबले भारत के ज्यादा करीब देखा जाता है, सो भारत की चिंता को दूर करने के लिए श्रीलंका में कहा गया है कि पोर्ट की सुरक्षा हमारी नेवी के हाथ में रहेगी, लेकिन श्रीलंका चीन के बिछाए कर्ज के जाल में फंस चुका है और इसी जाल से निकलने की कोशिश में उसे हंबनटोटा पोर्ट चीनी हाथों में सौंपना पड़ा।
नेपाल में ताजा चुनाव के बाद लेफ्ट पार्टियों की साझा सरकार में केपी शर्मा ओली के हाथों में सत्ता की चाबी है, जो चीन के प्रति अपना झुकाव खुलकर जाहिर करते हैं। नेपाल और भारत के संबंधों को यहां विदेश मंत्रालय युनीक बताता रहा है, जिनकी खुली सीमाएं हैं। नेपाल भौगोलिक तौर पर भी भारत के ज्यादा करीब है, लेकिन नेपाल के नए संविधान में भारतीय मूल के मधेसियों की उपेक्षा के आरोपों के बाद से दोनों देशों के रिश्तों में तनाव आ गया। हाल में नेपाल में चीन ने अपना निवेश बढ़ा दिया है, भौगोलिक दूरियों को मिटाने के लिए रेल लिंक की बात चल रही है।
बांग्लादेश को पनडुब्बी
बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार को भारत के फेवर में देखा जाता रहा है, लेकिन बांग्लादेश के साथ भारत हाल में लंबी अवधि का व्यापक रक्षा समझौता करना चाहता था, लेकिन बांग्लादेश इस तरह के समझौते से हिचकिचा गया। बांग्लादेश और चीन के बीच 2002 में ही रक्षा सहयोग का बड़ा समझौता हो चुका है। बांग्लादेश को दो चीनी पनडुब्बियां मिलने से भी भारत में चिंता है। बांग्लादेश के लिए चीन अब सबसे बड़ा ट्रेडिंग पार्टनर बन चुका है। म्यांमार के रोहिंग्या शरणार्थियों की वापसी पर भारत के ‘नरम’ रुख को लेकर बांग्लादेश में बेचैनी हो गई थी, क्योंकि ये शरणार्थी बांग्लादेश के लिए मु्श्किल बन गए थे।
रोहिंग्या मुद्दे पर भारत के सामने म्यांमार को भी खुश करने की जिम्मेदारी थी, क्योंकि चीन ने इस मुद्दे पर बांग्लादेश और म्यांमार के बीच डील कराने की कोशिश की थी। उसने रोहिंग्या आबादी वाले रखाइन स्टेट में इकॉनमिक कॉरिडोर का भी प्रस्ताव दिया था। इसे देखते हुए भारत ने रोहिंग्या आबादी वाले रखाइन स्टेट के विकास के लिए कदम उठाने की बात कही है। भारत भी म्यांमार में इन्फ्रास्ट्रक्चर में निवेश कर रहा है, लेकिन वहां चीन के बढ़ते निवेश को देखते हुए कहा जा रहा है कि वह भी श्रीलंका की तरह कर्ज के जाल में फंस सकता है।
भूटान को ऑफर
भूटान ने डोकलाम विवाद के दौरान करीबी पड़ोसी देश की तरह भारत का जमकर साथ दिया। असल में यह विवाद चीन और भूटान के बीच है, जिसे सुलझाने के लिए चीन पहले भी भूटान को ऑफर देता रहा है। कहते हैं कि चीन डोकलाम को लेकर कोई और इलाका भूटान को देने की पैरवी करता रहा है। अगर भूटान ने कभी यह ऑफर मान लिया तो सुरक्षा के लिहाज से भारत के लिए इसके बेहद गंभीर नतीजे होंगे। डोकलाम से सिलिगुड़ी कॉरिडोर बेहद करीब है, जो भारत को नॉर्थ-ईस्ट से जोड़ने का अहम कॉरिडोर है।