एसआईपी में आप नेट ऐसेट वैल्यू (एनएवी) या मार्केट लेवल की परवाह किए बगैर तय रकम तय समय पर लगाते हैं। इसलिए जब शेयर बाजार में गिरावट आती है तो निवेशक को म्यूचुअल फंड स्कीम की अधिक यूनिट्स मिलती हैं। मान लीजिए कि आप हर महीने 10,000 रुपये इस तरह से निवेश कर रहे हैं। 20 रुपये की एनएवी पर आपको इससे म्यूचुअल फंड की 500 यूनिट्स मिलेंगी। अगर बाजार में गिरावट होती है और एनएवी 16 पर आ जाती है तो आपको उतनी ही रकम में 625 यूनिट्स मिलेंगी।
वहीं, जब आप म्यूचुअल फंड यूनिट्स को रिडीम करते हैं यानी भुनाते हैं तो आपको हर यूनिट की एक बराबर कीमत मिलती है। इसमें जो यूनिट्स आप कम कीमत पर खरीदते हैं, उनसे आपको ऊंचा रिटर्न मिलता है। एसआईपी में आप लोअर एवरेज प्राइस चुकाते हैं, जिससे आपको ऊंचा रिटर्न मिलता है। इसलिए इससे ‘कम दाम पर खरीदकर ऊंचे दाम पर बेचने’ का लक्ष्य अपने आप पूरा होता है। यह तो रही एसआईपी से जुड़े निवेश के गणित की बात।
डुहिग ने किताब में एक दिलचस्प बात की है कि अच्छी आदतों से इंसान और अच्छी आदतें सीखता है। अगर आप अपनी कोई एक आदत बदलते हैं तो वह व्यवहार में बदलाव की बुनियाद बन सकता है। इसे आजमाने के लिए आप किसी फंड में मंथली एसआईपी से शुरुआत करिए। आप चाहें तो टैक्स सेवर फंड से शुरुआत कर सकते हैं। इस फंड में जब पैसा जमा होता रहेगा तो कभी-न-कभी आप और एसआईपी जोड़ने के लिए जरूर प्रेरित होंगे। जब आपको अहसास होगा कि इस तरह से बड़ा फंड तैयार हो रहा है तो फालतू खर्च घटाकर आप निवेश बढ़ाएंगे।