इसे समय की मार कहें या फिर कोरोना संक्रमण की देन। हरिद्वार कुंभ के बहाने धर्मनगरी हरिद्वार और ऋषिकेश का सौंदर्यीकरण कर उसे स्मार्ट सिटी बनाने का सपना परवान चढ़ता नजर नहीं आ रहा है। पहले लालफीताशाही, भष्ट्राचार और बाद में कुंभ कार्यों पर पड़ी लॉकडाउन की काली छाया। इस वजह से तमाम कार्य या तो रोक दिए गए या फिर उनका बजट ही जारी नहीं हो पा रहा, अब तक इनमें कटौती किए जाने की तैयारी हो रही है। कुंभ के लिए बेहद जरूरी माने जाने वाले अस्थायी कार्यों के लिए अभी तक बजट ही जारी नहीं किया जा सका है, जबकि अब तक तो इन्हें शुरू हो जाना था। बिगड़े हालात का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, 404 करोड़ 48 लाख 45 हजार रुपये के काम को अभी तक महज 171 करोड़ 23 लाख 61 हजार रुपये ही दिये गये हैं। इनमें से कुछ काम तो ऐसे हैं जो या तो अभी शुरू नहीं हुए या फिर शुरू होने की प्रक्रिया में हैं। जिन पर काम चल रहा है, उनमें से भी तमाम ऐसे हैं, निर्धारित समय सीमा से काफी पीछे चल रहे हैं।
कुछ का काम भष्ट्राचार की शिकायतों को सही पाए जाने पर निलंबन आदि की गई शासकीय कार्रवाइयों में अटका तो तमाम के लिए बरसात के बंद होने और नदी व नहर का पानी कम होने के इंतजार में रूका हुआ है। इनमें प्रमुख है, 22 करोड़ की लागत से नक्कशीदार हैरिटेज डेरोरेटिव पोल व लाइट लगाने की योजना। उद्देश्य था, हरिद्वार के धार्मिक महत्व के इलाकों खासकर हरकी पैड़ी और उससे जुड़े इलाकों के सौंदयीकरण में वृद्धि। पिछले वर्ष स्वीकृत इस योजना पर काम शुरू होना तो दूर अब तक इसके टेंडर प्रक्रिया तक पूरी नहीं हो सकी है। हरिद्वार-ऋषिकेश के धार्मिक महत्व के मुख्य इलाकों में 45 करोड़ से बनने वाले दो आस्था पथ और एक आस्था पथ बाढ़ सुरक्षा कार्य का काम भी पिछड़ता जा रहा है।
आस्था पथ के सौंदय में बढ़ोत्तरी योजना पर हैरिटेज पोल टेंडर प्रक्रिया के उलझने और पहाड़ों में बारिश के बंद होने-नदी जलस्तर के कम होने के इंतजार का ग्रहण लगा हुआ है। आस्था पथ का निर्माण देर-विदेश से आने वाले हर तीर्थ पर्यटक को इससे गुजरने पर उत्तराखंड की लोक और धार्मिक संस्कृति, परंपरा से रूबरू कराने, उसे कुंभ के आयोजन की वजह, इतिहास, परंपरा और प्रमुख घटनाओं के साथ-साथ इसके धार्मिक महत्व की सटीक और सजीव जानकारी आकर्षक भित्ती चित्रों, एलईडी स्क्रीन, झांकियों और म्युरल के माध्यम से देने की नीयत से कराया जा रहा है। ताकि उन्हें अलौकिक, आध्यात्मिक अहसास हो सके। पर, यह कुंभ से पहले बन भी सकेगा या नहीं इसे लेकर संदेह व्यक्त किया जा रहा है। हालांकि, निर्माण संस्था उत्तराखंड सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता मनोज कुमार सिंह का दावा इसे कुंभ से पहले पूरा करने का है।
ऊर्जा निगम के माध्यम से 21.88 करोड़ से लागत से लगाये जाने वाले नक्कशीदार हैरिटेज डेरोरेटिव पोल व लाइट लगाने को शहरी क्षेत्र में अंडरग्राउंड केबिल का लंबा काम करना है, जिसके लिए समय ही नहीं बचा। अभी तो इसका टेंडर तक नहीं हुआ है। पोल खरीद का टेंडर करीब एक साल से प्रक्रिया में ही उलझा है। निर्माण संस्था ऊर्जा निगम के अधिशासी अभियंता अंकित जैन अभी तक काम शुरू न होने की बात स्वीकार करते हुए टेंडर प्रक्रिया के गतिमान होने का दावा कर रहे हैं। मेला क्षेत्र में सुरक्षा की दृष्टि से 1304 सीसीटीवी कैमरे लगने और मेला अधिष्ठान अगस्त क्रांति भवन (सीसीआर) में इसके लिए इंटीग्रेटेड कमांड एंड कंट्रोल सेंटर का 50 करोड़ से अधिक का काम अभी बाकी है, कंट्रोल रूम भी अब तक तैयार नहीं हुआ है। यह सभी प्रक्रिया में ही उलझे हुए हैं। कम समय में इनका पूरा हो पाना संभव नहीं दिखता।
इटली की कंपनी को काम देने की जुगत ने उलझाया हैरिटेज पोल का मामला
हरिद्वार-ऋषिकेश के आस्था पथ के लिए जरूरी और हरिद्वार हरकी पैड़ी क्षेत्र के सौंदर्यीकरण योजना का प्रमुख पहलू नक्कशीदार हैरिटेज डेरोरेटिव पोल व लाइट का मामला ऊर्जा निगम की आपसी बंदरबांट में उलझ गया। बताया जा रहा है कि ऊर्जा निगम के कुछ बड़े ओहदेदार केदारनाथ की तरह यहां भी नक्कशीदार हैरिटेज डेरोरेटिव पोल व लाइट लगाने का ठेका अपनी पसंद की इटली की कंपनी को देना चाह रहे थे। इसी के तहत इसी कंपनी को काम छद्दम नाम से कार्य के सर्वे का काम भी दे दिया गया था, ताकि वह अपने हिसाब से सर्वे कर रिपोर्ट प्रेषित करे। जिससे टेंडर में अन्य कोई कंपनी उसका मुकाबला ही न कर सके। आरोप है कि निगम ने इटली की उक्त कंपनी को ठेका देने के लिए पिछले वर्ष निकाले गए पहले टेंडर में वही शर्ते रखीं थीं, जिन्हें केवल इटली की कंपनी ही पूरा करती थी। मामले की शिकायत होने पर टेंडर को कैंसिल करना पड़ा। तब से लेकर अब तक छह बार यह प्रक्रिया कैंसिल की गई है, बताया जा रहा है कि यह सब अब तक हुई ‘क्षतिपूर्ति’ को दुरूस्त करने के लिए किया जा रहा है।