काशी में आज धूमधाम से मनाया जा रहा महाशिवरात्रि का पर्व,भक्तों की सुबह से लगीं कतारें
काशी में आज धूमधाम से मनाया जा रहा महाशिवरात्रि का पर्व,भक्तों की सुबह से लगीं कतारें

काशी में आज धूमधाम से मनाया जा रहा महाशिवरात्रि का पर्व,भक्तों की सुबह से लगीं कतारें

वाराणसी। देवाधिदेव महादेव को प्रसन्न करने के लिए किए जाने वाले व्रतों में महाशिवरात्रि सर्वोपरि है। इसे भारत समेत दुनिया भर में सनातनी उपवास -व्रत समेत रात्रि जागरण कर मनाते हैं। यह महापर्व फागुन चतुर्दशी को मनाया जाता है। इस बार फागुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि 13 फरवरी को रात 10.22 बजे लग रही है जो 14-15 की मध्य रात्रि 12.17 बजे तक रहेगी। फागुन चतुर्दशी तिथि इस बार 13 व 14 दोनों ही दिन मध्य रात्रि में मिल रही है। ऐसे में महाशिवरात्रि दोनों ही दिन यानी 13 व 14 फरवरी को मनाई जाएगी।काशी में आज धूमधाम से मनाया जा रहा महाशिवरात्रि का पर्व,भक्तों की सुबह से लगीं कतारें

हालांकि गणना और विधान अनुसार पहले दिन व्रत-विधान का अधिक मान है। श्रीकाशी विश्वनाथ दरबार समेत काशीवासी 13 को ही महाशिवरात्रि मना रहे हैं। इसकी रंगत एक दिन पहले सोमवार को ही काशी में निखर आई। काशी विद्वत परिषद के संगठन मंत्री ख्यात ज्योतिषाचार्य पं. ऋषि द्विवेदी के अनुसार जो लोग 13 को व्रत रहेंगे, वे पारन 14 को करेंगे। वहीं 14 को महाशिवरात्रि व्रत रखने वाले रात में ही पारन कर लेंगे। वैष्णव मतावलंबी उदयातिथि के इस पर्व को मनाते हैं, ऐसे में उनकी महाशिवरात्रि 14 को होगी।

अलग-अलग पक्ष

वास्तव में महाशिवरात्रि में तिथि निर्णय के लिए तीन पक्ष लिए जाते हैं। पहला चतुर्दशी प्रदोष व्यापिनी, दूसरा निशिथ व्यापिनी और तीसरा उभय व्यापिनी। पं. द्विवेदी के अनुसार धर्म सिंधु ने मुख्य पक्ष निशिथ व्यापिनी ग्रहणीय बताया है लेकिन दोनों ही दिन प्रदोष व्यापिनी मिलें या दोनों ही दिन न मिलें तब प्रदोष व्याप्ति वाली परा ग्रहण करते हैं। इस तरह इनके मत में परा ग्रहण करने में प्रदोष व्यापिनी में तो निशिथ है ही अव्यक्ति में प्रदोष व्यापिनी ले रहे हैं, इससे व्यक्त होता है कि निशिथ व्यापिनी मुख्य व प्रदोष व्यापिनी गौण है।वहीं पद्म पुराण के अनुसार कहा गया है कि अद्र्धरात्रि से पहले चतुर्दशी का योग हो तो शिवरात्रि पूर्व विद्धा ही लेनी चाहिए।

स्कंद पुराण में कहा गया है कि बड़े से बड़े पापों को निष्कृत पूर्व विद्धा है लेकिन अमावस्या युक्ता शिवरात्रि वर्जित है और अमावस्या के योग की निंदा की गई है। महाशिवरात्रि व्रत विवरण में लिंग पुराण में उल्लेख है कि -‘प्रदोष व्यापिनी ग्राह्यïा शिवरात्रि चतुर्दशी। रात्रि जागरण यस्मात् तस्मात्तां समूपोपयेत।। अर्थात शिवरात्रि की चतुर्दशी प्रदोष व्यापिनी लेनी चाहिए। देखा जाए तो धर्म सिंधु, पद्म पुराण, स्कंद पुराण में निशिथ व्यापिनी को महत्व दिया गया है तो लिंग पुराण के अनुसार प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी की महत्ता बताई गई है। ऐसे में दोनों का अपना निर्णय मान्य है।

पूजन विधान

मान्यता है कि भगवान शंकर का विवाह माता पार्वती के साथ इस दिन ही हुआ था। इस दिन प्रयाग काशी में गंगा स्नान का भी विशेष महत्व होता है। जो व्यक्ति निराहार रहकर रात्रि के चारो प्रहर शिव पूजन करता है, उसे भगवान शंकर अतिप्रसन्न होते हैं। कहा गया है कि महाशिवरात्रि के बराबर कोई पापनाशक व्रत नहीं है। इस व्रत को करके मनुष्य अपने सभी पापों से छूट जाता है और अनंत फल प्राप्त करता है। इस दिन शिवलिंग का विधि विधान से अभिषेक और पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।  

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