आपने कोलकाता के प्रसिद्ध और जाग्रत मंदिर दक्षिणेश्वर के बारे में ज़रूर सुना होगा। ये मंदिर कई सालों से कोलकाता का एक महान धर्मस्थल बना हुआ है। पर क्या आप जानते हैं> एक समय ऐसा भी था कि इस मंदिर में पुजारी पैर रखने से भी डरते थे।
हिन्दुओं की पुरानी जाती व्यवस्था और बंगाल की कुलीन प्रथा की वजह से यहां रहना उस समय काफी जोखिम भरा माना जाता था। उस समय एक शूद्र जमींदार की विधवा पत्नी रासमणि ने ऐसा काम कर दिखाया कि आज तक इस मंदिर का नाम भारत के महान धर्मस्थलों में गिना जाता है। रासमणि काली मान की आज्ञा से इस भव्य मंदिर का निर्णाण करवाना चाहती थी। जमींदार परिवार से होने के कारण उनके पास धन की कमी तो नही थी, पर इस मंदिर के बनने के बाद इस मंदिर में किसी भी पुजारी ने पूजा करने से मना कर दिया। क्योंकि बंगाल में उस समय के लिहाज से एक शूद्र स्त्री द्वारा मंदिर का निर्माण करवाना तत्कालीन राजा के नियमों के खिलाफ था।
मंदिर बनाया गया और मंदिर का नाम रखा गया दक्षिणेश्वर मां काली मंदिर। बता दें कि इस मंदिर को बनवाने में 8 वर्ष लगे और कुल 9 लाख रुपयों की लागत आई। कहते हैं रासमणि को एक रात मां काली ने सपने में दर्शन दिए और उनसे मंदिर बनवाने की बात कही। इस मंदिर में परमहंस रामकृष्ण जी के आने के लोगों की श्रद्धा और बढ़ गई। रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद के गुरु थे। कहा जाता था कि रामकृष्ण पूरा दिन माँ काली को निहारते रहते थे। आज यह मंदिर कोलकाता के उत्तर में विवेकानंद पुल के पास दक्षिणेश्वर काली मंदिर स्थित है। यह मंदिर बीबीडी बाग से 20 किलोमीटर दूर है।
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