ज्योतिष के जानकारों की मानें तो करवाचौथ का व्रत हर सुहागिन की जिंदगी संवार सकता है, लेकिन इसके लिए इस दिव्य व्रत से जुड़े नियम और सावधानियों का ध्यान रखना बेहद जरूरी होता है. करवाचौथ के व्रत और पूजन की सही विधि से इस व्रत का 100 गुना फल मिलेगा.
इस व्रत की पूजा के दौरान व्रत कथा पढ़ने का भी बहुत महत्व है.
करवा चौथ की प्रचलित व्रत कथा
प्राचीन काल में एक ब्राह्मण था. उसके चार लड़के और एक गुणवती लड़की थी. एक बार लड़की मायके में थी, तब करवा चौथ का व्रत पड़ा. ब्राह्मण की पुत्री ने व्रत को विधिपूर्वक करते हुए पूरे दिन निर्जला व्रत किया.
इस बात से उसके चारों भाई परेशान थे कि बहन को प्यास लगी होगी, भूख लगी होगी, पर बहन चंद्रोदय के बाद ही जल ग्रहण करेगी. भाइयों से रहा नहीं गया, उन्होंने शाम होते ही बहन को बनावटी चंद्रोदय दिखा दिया. एक भाई पीपल के पेड़ पर छलनी लेकर चढ़ गया और दीपक जलाकर छलनी से रोशनी उत्पन्न कर दी. तभी दूसरे भाई ने नीचे से बहन को आवाज दी- देखो बहन, चंद्रमा निकल आया है, पूजन कर भोजन ग्रहण करो.
बहन ने चांद का अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण कर लिया. भोजन ग्रहण करते ही उसके पति की मृत्यु की खबर आ गई और इस बात को सुनकर वह दुखी हो विलाप करने लगी, तभी वहां से रानी इंद्राणी निकल रही थीं. उनसे उसका दुख न देखा गया.
ब्राह्मण कन्या ने उनके पैर पकड़ लिए और अपने दुख का कारण पूछा, तब इंद्राणी ने बताया- तूने बिना चंद्र दर्शन करवा चौथ का व्रत तोड़ दिया इसलिए यह कष्ट मिला. अब तुम वर्ष भर की चौथ का व्रत नियमपूर्वक करना तो तेरा पति जीवित हो जाएगा. उसने इंद्राणी के कहे अनुसार चौथ व्रत किया तो पुनः सौभाग्यवती हो गई. इसलिए प्रत्येक स्त्री को अपने पति की दीर्घायु के लिए यह व्रत करना चाहिए.
करवाचौथ की दूसरी कथा के अनुसार
कहते हैं जब पांडव वन-वन भटक रहे थे तो भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को इस दिव्य व्रत के बारे बताया था. इसी व्रत के प्रताप से द्रौपदी ने अपने सुहाग की लंबी उम्र का वरदान पाया था. द्रोपदी ने यह व्रत किया और अर्जुन सकुशल मनोवांछित फल प्राप्त कर वापस लौट आए. तभी से अपने अखंड सुहाग के लिए हिन्दू महिलाएं करवा चौथ व्रत करती हैं.