पाकिस्तान की सरकार के इजाजत के बिना ये विमान रात आठ बजकर सात मिनट पर लाहौर में लैंड करता है। लाहौर से दुबई के रास्ते होते हुए इंडियन एयरलाइंस का ये अपहृत विमान अगले दिन सुबह के तकरीबन साढ़े आठ बजे अफगानिस्तान में कंधार की जमीन पर लैंड करता है। उस दौर में कंधार पर तालिबान की हुकूमत थी।
180 लोग सवार थे…
विमान पर कुल 180 लोग सवार थे। विमान अपहरण के कुछ ही घंटों के भीतर चरमपंथियों ने एक यात्री रूपन कात्याल को मार दिया। 25 साल के रूपन कात्याल पर चरमपंथियों ने चाकू से कई वार किए थे। रात के पौने दो बजे के करीब ये विमान दुबई पहुंचा। वहां ईंधन भरे जाने के एवज में कुछ यात्रियों की रिहाई पर समझौता हुआ।
दुबई में 27 यात्री रिहा किए गए, इनमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे थे। इसके एक दिन बाद डायबिटीज से पीड़ित एक व्यक्ति को रिहा कर दिया गया। कंधार में पेट के कैंसर से पीड़ित सिमोन बरार नाम की एक महिला को कंधार में इलाज के लिए विमान से बाहर जाने की इजाजत दी गई और वो भी सिर्फ 90 मिनट के लिए।
उधर, बंधक संकट के दौरान भारत सकरार की मुश्किल भी बढ़ रही थी। मीडिया का दबाव था, बंधक यात्रियों के परिजन विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। और इन सब के बीच अपरहरणकर्ताओं ने अपने 36 चरमपंथी साथियों की रिहाई के साथ-साथ 20 करोड़ अमरीकी डॉलर की फिरौती की मांग रखी थी।
पेट के कैंसर की मरीज सिमोन बरार की तबियत विमान में ज़्यादा बिगड़ने लगी और तालिबान ने उनके इलाज के लिए अपहरणकर्ताओं से बात की। तालिबान ने एक तरफ़ विमान अपहरणकर्ताओं तो दूसरी तरफ भारत सरकार पर भी जल्द समझौता करने के लिए दबाव बनाए रखा।
एक वक्त तो ऐसा लगने लगा कि तालिबान कोई सख्त कदम उठा सकता है। लेकिन बाद में गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने कहा, “तालिबान ने ये कहकर सकारात्मक रवैया दिखाया है कि कंधार में कोई रक्तपात नहीं होना चाहिए नहीं तो वे अपहृत विमान पर धावा बोल देंगे। इससे अपहरणकर्ता अपनी मांग से पीछे हटने को मजबूर हुए।”
वाजपेयी सरकार
हालांकि विमान में ज्यादातर यात्री भारतीय ही थे लेकिन इनके अलावा ऑस्ट्रेलिया, बेल्जियम, कनाडा, फ्रांस, इटली, जापान, स्पेन और अमरीका के नागरिक भी इस फ़्लाइट से सफर कर रहे थे। तत्कालीन एनडीए सरकार को यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चत करने के लिए तीन चरमपंथियों को कंधार ले जाकर रिहा करना पड़ा था।
31 दिसंबर को सरकार और अपहरणकर्ताओं के बीच समझौते के बाद दक्षिणी अफगानिस्तान के कंधार एयरपोर्ट पर अगवा रखे गए सभी 155 बंधकों को रिहा कर दिया गया। ये ड्रामा उस वक्त खत्म हुआ जब वाजपेयी सरकार भारतीय जेलों में बंद कुछ चरमपंथियों को रिहा करने के लिए तैयार हो गई।
तत्कालीन अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के विदेश मंत्री जसवंत सिंह खुद तीन चरमपंथियों अपने साथ कंधार ले गए थे। छोड़े गए चरमपंथियों में जैश-ए -मोहम्मद के प्रमुख मौलाना मसूद अजहर, अहमद जरगर और शेख अहमद उमर सईद शामिल थे।
सुरक्षा की गारंटी
इससे पहले भारत सरकार और चरमपंथियों के बीच समझौता होते ही तालिबान ने उन्हें दस घंटों के भीतर अफ़ग़ानिस्तान छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया था। शर्तें मान लिए जाने के बाद चरमपंथी हथियारों के साथ विमान से उतरे और एयरपोर्ट पर इंतजार कर रही गाड़ियों पर बैठ वहां से फौरन रवाना हो गए।
कहा जाता है कि इंडियन एयरलाइंस के विमान को अगवा करने वाले चरमपंथियों ने अपनी सुरक्षा की गारंटी के तौर पर तालिबान के एक अधिकारी को भी अपनी हिरासत में रखा था। कुछ यात्रियों ने बताया कि बंधक संकट के दौरान अपहरणकर्ताओं ने अपने ही गुट के एक व्यक्ति को मार दिया था। हालांकि किसी ने इसकी पुष्टि नहीं की।
ठीक आठ दिन के बाद साल के आखिरी दिन यानी 31 दिसंबर को सरकार ने समझौते की घोषणा की। प्रधानमंत्री वाजपेयी ने नए साल की पूर्व संध्या पर देश को ये बताया कि उनकी सरकार अपहरणकर्ताओं की मांगों को काफी हद तक कम करने में कामयाब रही है।