आने वाले दिनों में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) रेपो रेट (जिस रेट पर RBI बैंकों को कर्ज देता है) कम कर सकता है. आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक आर्थिक मंदी के चलते घरेलू बाजार में विकास की संभावनाएं मंद पड़ रही हैं. ऐसे में लिक्विडिटी को बढ़ाने के लिए RBI रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती कर सकती है.
इससे पहले फरवरी महीने में रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की थी. यह कटौती करीब 18 महीने के बाद की गई थी. वर्तमान में रेपो रेट रेट 6.25 फीसदी है. रिवर्स रेपो रेट को भी 25 बेसिस प्वाइंट घटाकर 6 फीसदी कर दिया गया था. अगर रेपो रेट में कटौती की जाती है तो आपकी EMI भी कम होगी, क्योंकि 1 अप्रैल 2019 से लोन की दर रेपो रेट के आधार पर तय की जाएगी. वर्तमान में यह MCLR के आधार पर तय की जाती है.
वर्तमान में बैंक कैश की किल्लत से जूझ रहे हैं. ऐसे में 26 मार्च को रिजर्व बैंक ने डॉलर-रुपया अदला बदली नीलामी प्रक्रिया के तहत करीब 5 अरब डॉलर (35000 करोड़ रुपये) बैंकों को दिए हैं. इंडस्ट्रियल ग्रोथ रेट भी लगातार कम रहे हैं और आने वाले दिनों में इसमें सुधार की कोई संभावना नहीं दिख रही है.
गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता वाली RBI की मोनेटरी पॉलिटी कमेटी (MPC) की तीन दिवसीय बैठक मुंबई में होने वाली है. उम्मीद की जा रही है कि बैठक के बाद 4 अप्रैल को रेपो रेट में कटौती का ऐलान किया जाएगा. गवर्नर दास पहले ही इंडस्ट्री के लोगों, निवेशकों और MSMEs के साथ बैठक कर चुके हैं.
इंडस्ट्री के लोगों का कहना है कि मुद्रास्फीति लगातार कम रही है. RBI इस कोशिश में है कि महंगाई दर 4 फीसदी के आसपास रहे. लेकिन, फरवरी में WPI (थोक महंगाई दर) 2.93 फीसदी और खुदरा महंगाई दर 2.57 फीसदी रही है. ऐसे में बाजार में ज्यादा कैश की जरूरत है जिससे महंगाई दर में उछाल आए, जिसका सीधा असर इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन पर पड़ता है. कैश फ्लो बढ़ने से मांग बढ़ती है, जिससे महंगाई दर भी बढ़ती है. मांग बढ़ने से औद्योगिक उत्पादन (इंडस्ट्रियल प्रोडक्शन) भी बढ़ता है जो अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक संकेत हैं. जनवरी महीने में औद्योगिक उत्पादन दर घटकर 1.7 फीसदी पर पहुंच गई है जो ठीक एक साल पहल, ( जनवरी 2018) 7.5 फीसदी थी.