मोदी से बात करने के बाद ओबामा ने उड़ाई सारे मुस्लिम देशों की नींद…..

नई दिल्ली। राष्ट्रपति ओबामा ने आतंकवाद के खिलाफ अब तक का सबसे बड़ा कदम उठाया है। उनके इस कदम से सारे मुस्लिम देशों की नींद उड़ गई है। दरअसल चीन में जी 20 सम्मेलन के दौरान पीएम मोदी और ओबामा के बीच आतंकवाद खत्म करने को लेकर बात हुई थी। मोदी से बातचीत के बाद ओबामा ने अमेरिका लौटते ही आतंकवाद पर बड़ा हमला कर दिया है। ओबामा ने इस काम में  मुस्लिम देशों के सबसे बड़े दुश्मन इजरायल को हथियार बनाया है। 

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अब अमेरिका अगले 10 सालों में इजरायली मिलिटरी को 38 अरब डॉलर मुहैया कराएगा। अमेरिका ने अब तक इससे बड़ी रकम किसी भी देश को मिलिटरी मदद के रूप में नहीं दी है। इसे लेकर महीनों से दोनों देशों के बीच पर्दे के पीछे बातचीत चल रही थी। 
अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने कहा कि दोनों देश 10 सालों के समझौते पर पहुंचने में कामयाब रहे। बुधवार को इस समझौते पर हस्ताक्षर हो गया। सुरक्षा विश्लेषकों का मानना है इस अमेरिकी मदद से अरब वर्ल्ड की नींद उड़नी लाजिमी है। अमेरिका अरब के साथ तो रहना चाहता है लेकिन कमजोर इजरायल की कीमत पर नहीं।
अमेरिका और इजरायल ने वास्तविक रकम का खुलासा नहीं किया है लेकिन इस समझौते से जुड़े करीबी अधिकारियों का कहना है कि हर साल अमेरिका इजरायल को 3.8 बिलियन डॉलर देगा। इसके पहले 10 सालों के समझौते में वह 3.1 बिलियन डॉलर मुहैया कराता था। अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की नैशनल सिक्यॉरिटी अडवाइजर सुजन राइस ने इस समझौते में अहम भूमिका निभाई है। ओबामा प्रशासन ने कहा कि इस पूरी प्रक्रिया में स्टेट डिपार्टमेंट के साथ सुजन राइस भी शामिल रहीं।
इजरायल के ऐक्टिंग नैशनल सिक्यॉरिटी अडवाइजर जैकब नाजेल भी इसे लेकर वॉशिंगटन पहुंचे हुए हैं। इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतयाहू ने एक संक्षिप्त बयान जारी कर इस समझौते की पुष्टि की है। नेतनयाहू ने कहा कि दोनों देश समझौते पर पहुंच गए हैं। 
हालांकि उन्होंने इस मामले में और जानकारी नहीं दी। इस समझौते के तहत इजरायल फंड के कुछ हिस्से को मिलिटरी प्रॉडेक्ट्स पर खर्च करेगा। इजरायल अपनी मिलिटरी को नई तकनीक से जोड़ेगा। अंततः सारी रकम अमेरिकन मिलिटरी इंडस्ट्रीज पर खर्च होगा। फंड के कुछ हिस्से को इजरायल आंतरिक रूप से भी खर्च करेगा।
नए समझौते के तहत फंड के एक हिस्से को मिलिटरी इंधन पर खर्च करने की इजरायल की सामर्थ्य भी खत्म होगी। एक और रियायत दी गई है कि इजरायल कांग्रेस से और फंड अप्रूव कराने को नहीं कहेगा। यह स्थिति तब तक कायम रहेगी जब तक इजरायल किसी नए युद्ध का सामना नहीं कर रहा हो। इस समझौते को लेकर दोनों देशों के बीच महीनों से बातचीत चल रही थी।
ओबामा प्रशासन चाहता था कि वह अपना कार्यकाल खत्म होने से पहले इस समझौते को अंजाम तक पहुंचा दे। दूसरी तरफ इजरायली पीएम बेंजामिन चाहते थे अगले साल फरवरी में अमेरिका की नई सरकार से इससे बेहतर डील की जाए। ओबाम अपने सिर पर यह बदनामी नहीं लेना चाहते थे कि उनकी सरकार ने इजरायल को मदद नहीं की।
वर्षों तक ओबामा और इजरायली पीएम नेतनयाहू के रिश्ते खराब रहे हैं। जब ओबामा ने ईरान के साथ न्यूक्लियर डील फाइनल की तो दोनों देशों के रिश्तों में भारी तनाव आया। इससे पहले इजरायल और अमेरिका के रिश्तों में इतनी कड़वाहट कभी नहीं थी। इजरायल का मानना है कि परमाणु हथियार से संपन्न ईरान उसके अस्तित्व के लिए खतरा है। दूसरी तरह वह ओबामा प्रशासन के उस तर्क से असहमत है कि ईरान के परमाणु प्रोग्राम को सीमित कर इजरायल को ज्यादा सुरक्षित बनाया जा सकता है।
इजरायली अधिकारियों का कहना है कि इस अमेरिकी मदद से मिलिटरी योजना को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी। ओबामा ने इस डील को अंजाम तक पहुंचाकर अपने उत्तराधिकारी को राहत दी है कि उन्हें शुरुआत के महीनों में इसे लेकर माथापच्ची नहीं करनी होगी। रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डॉनल्ड ट्रंप और डेमोक्रेट हिलरी क्लिंटन ने भी चुने जाने पर इजरायल को भरपूर मदद देने का वादा किया है।
यूएस-इजरायल डील में पहली बार मिसाइल डिफेंस प्रोग्राम्स को भी शामिल किया गया है। पहले के समझौते के तहत अमेरिकी कांग्रेस ने मिसाइल प्रोग्राम के लिए अलग से फंड की मंजूरी दी थी और यह सालाना आधार पर था। इजरायल समर्थक सबसे बड़ा लॉबीइंग ग्रुप इजरायल अफेयर्स कमिटी ने इस डील को अंजाम तक पहुंचाने के लिए ओबामा की प्रशंसा करते हुए कहा है कि इजरायल के दुश्मनों के लिए यह कड़ा संदेश है। इस ग्रुप ने कहा कि इस फंड से इजरायल आपने आर्म्ड फोर्सेज को और अत्याधुनिक बना सकेगा। 
liveindia.live से साभार….

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