हाल ही में जारी KPMG की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वित्त वर्ष 2021 तक भारत में डिजिटल और ओवर-द-टॉप (OTT) कॉन्टेन्ट इंडस्ट्री 17 फीसदी की दर से बढ़ेगा. वित्त वर्ष 2022 तक यह 33,800 करोड़ रुपये का बिज़नेस होगा.
जानकारों का कहना है कि ओटीटी सेक्टर के लिए यह एक बहुत बड़ी समस्या है. भारत में इस सेक्टर को लेकर अभी भी बहुत स्कोप है, लेकिन पाइरेसी की समस्या से बड़ा झटका भी लग सकता है. उनका कहना है कि भारत में दो वजहों से पाइरेसी होती है.
क्या है पाइरेसी की मुख्य वजहें
पहला तो यह पाइरेसी इसलिए होता है क्योंकि भारत में यह प्रोडक्ट बिल्कुल ही उपलब्ध नहीं है. ऐसा भी होता कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लॉन्च होने के बहुत समय बाद यह प्रोडक्ट भारत में उपल्ब्ध हेता है. दूसरी वजह यह है कि ग्राहक इस कॉन्टेन्ट के लिए खर्च करने की स्थिति में नहीं है. वर्तमान में करीब 60 ऐसे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स हैं, जिनकी नज़र भारतीय बाजार पर है.
पाइरेसी के जरिए व्यक्तिग जानकारी लीक होने का खतरा
उनका कहना है कि पाइरेसी की वजह से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का बिज़नेस दो कदम पीछे हो जाता है. इस समस्या की वजह से उन्हें अपने संभावी ग्राहकों को खोने का खतरा होता है. कई बार तो मौजूदा ग्राहक भी पाइरेटेड कॉन्टेन्ट के जरिए एक्सेस करने लगते हैं. लॉकडाउन के दौरान पाइरेसी की समस्या तेजी से बढ़ी है. पाइरेसी दो-धारी तलवार भी है. कई बार इन प्लेटफॉर्म्स के कुकीज़ और बॉट्स सिस्टम हैक करने के लिए भी इस्तेमाल किए जाते हैं. इस प्रकार व्यक्तिगत जानकारी लीक होने का खतरा बना रहता है.
अपने स्तर पर प्रयास कर रहे ओटीटी प्लेटफॉर्म्स
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री (CII) पहले से ही एंटी-पाइरेसी रेगुलेशन को लेकर तैयारियां कर रहा है. ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. उदाहारण के तौर पर देखें तो अगर आप नेटफ्लिक्स के किसी शो का स्क्रीनशॉट लेते हैं तो आपको एक ब्लैक स्क्रीन मिलेगा. वहीं, अगर आॅफलाइन डाउनलोड का सहारा ले रहे तो इसे आसानी से डिवाइस से एक्सट्रैक्ट नहीं किया जा सकेगा. यूट्यूब अपने यूजर्स को इसकी सुविधा देता है.