लखनऊ. पहले लोकसभा में शून्य और फिर विधान सभा में निराशाजनक प्रदर्शन के बाद बहुजन समाज पार्टी के मिशनरी कार्यकर्ताओं में उबाल है. बहुजन मूवमेंट से जुड़े रहे ये नेता अब खुल कर बगावत करने के बाद नया विकल्प बनाने की ओर बढ़ रहे हैं.
आने वाली 14 अप्रैल को डा/ भीम राम आंबेडकर जयंती के अवसर पर एक नए मंच की घोषणा होने की संभावना है जहाँ बहुजन मिशन से जुड़े रहे लोगो की बड़ी भागीदारी के लिए प्रयास जारी हैं. कांशीराम के जीवन काल में ही जब मायावती का वर्चस्व पार्टी में बढ़ने लगा था एक एक कर कई बड़े नेताओं ने बसपा का दामन छोड़ा. दशरथ पाल, राजाराम पाल, दीना नाथ भास्कर, डा. सोने लाल पटेल और ओम प्रकाश राजभर सरीखे नेता एक एक कर पार्टी से अलग होते रहे.
मगर वह दौर मायावती के बुलंद सितारों का था और इन नेताओं के जाने का कोई बड़ा फर्क मायावती पर नहीं पड़ा. इसके बाद पार्टी में बाहरी नेताओं के आने का सिलसिला जोर पकड़ने लगा. विधान सभा की चौखट चूमने के लिए लालायित धनबलियों को बसपा रास आने लगी.
मायावती ने भी इसे खूब प्रोत्साहन दिया लेकिन फिर इन धनबली नेताओं ने पार्टी का टिकट बेचने का आरोप मायावती पर लगाना शुरू किया. विधानसभा से ले कर राज्यसभा तक के टिकट के लिए मायावती पर पैसे लेने का आरोप लगा. इसने माया की साख को बड़ा नुकसान पहुँचाया.
रही सही कसर बसपा के भीतर सतीश मिश्र और नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे नेताओं की मनमानी ने पूरी कर दी. मायावती के इर्दगिर्द मौजूद नेताओं के काकस ने पार्टी के मिशनरी कार्यकर्ताओं को दूर कर दिया है. इस बात के सबसे सटीक उदाहरण दद्दु प्रसाद सरीखे नेता है.
मगर विधानसभा में करारी हार के बाद पार्टी के पूर्व विधान परिषद सदस्य और मायावती सरकार में मंत्री रहे कमलाकांत गौतम और मायावती के पूर्व ओएसडी गंगाराम आंबेडकर ने जब मायावती पर मिशन से भटकने का आरोप लगा कर पार्टी छोड़ी तब यह मामला बढ़ गया.
इन दोनों नेताओं ने अब 13 अप्रैल को एक राज्य स्तरीय सम्मेलन बुलाने का आह्वान किया है. योजना है कि उस दिन ‘मिशन सुरक्षा परिषद’ नाम का एक नया समूह बनाया जाएगा. ‘हमने उन सभी बीएसपी समर्थकों से साथ आने की अपील है जो पार्टी संस्थापक कांशीराम के बहुजन मिशन पर काम करना चाहते हैं. बाबा साहब की जयंती पर एक नया फोरम बनाया जाएगा.
लगातार चुनाव हार से पार्टी कार्यकर्ताओं के गिरते मनोबल की बीएसपी नेतृत्व (मायावती) को कोई परवाह नहीं है. हमने 2012 में सत्ता गंवा दी, 2014 के लोकसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं जीत पाए और अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ 19 सीटें जीत सके.
ये तमाम बातें साफ करती हैं कि कांशीराम द्वारा बनाई गई पार्टी का वोट बेस तेजी से सिकुड़ रहा है.’ — गंगाराम आंबेडकर नया राजनीतिक मंच भी ठीक वैसे ही दलितों, अति पिछड़ों और समाज के अन्य कमजोर तबकों को साथ लेकर नया काडर बनाएगा जैसा कभी कांशीराम ने किया था.
इस पहल के साथ पार्टी के कई असंतुष्ट नेताओं के आने की संभावना है जो मायावती की कार्यशैली से नाराज है और कांशीराम के मिशन के लिए समर्पित है.