स्कूल से जब भी वापस आता तो हमेशा एक बुढ़िया को एक पुराने कीकर के नीचे सोते देखता था। गरमी हो या सर्दी वो हमेशा वहीं आसपास ही रहती थी। गाँव के लोगों को तरस आता तो कोई रोटी दे देता था।लेकिन उसे देखकर कभी लगा नहीं की वो हमेशा से ऐसी रही होगी। मन कहता था की ये जनम से ग़रीब नहीं हो सकती।छोटा था इसीलिए हिम्मत नहीं जुटा पाता था उसके पास जाने की।लेकिन मन में उमड़ते सवाल और उस बुढ़िया का चेहरा परेशान करने लगा था।
कौन दे सकता है वो जवाब। गाँव के पीपल के नीचे एक ही शख़्स हैं चाचा पूरन जिसने मेहरौली में बहुत कुछ देखा है।चाचा पूरन मुझे प्यार करते थे तो मैं भी उनसे अपने मन की बात कर सकता था। सर्दियों में एक दिन चाचा धूप सेक रहे थे। मौका अच्छा था। चाचा का मूड भी बढ़िया लग रहा था। सो आज हो जाए वो बात।मैंने गाँव की परम्परा के अनुसार चाचा पूरन के पैर छूये और राम राम कहा। चेहरे की झुर्रियाँ साफ़ बता रहीं थी कि जवाब हैं इनके पास।
हाँ आज कैसे आया : चाचापूरन बस ऐसे ही : मैंने कहा ऐसे तो तू नहीं आया। कुछ तो है।बता क्या बात है, उन्होंने मुझसे कहा पूछूँगा तो सही लेकिन आप पिताजी से कुछ नहीं कहना। दरसल वो जो कीकर के नीचे बुढ़िया रहती है,उसकी क्या कहानी है।
चाचा बोले – कुछ कहानियाँ बस ख़त्म ही हो जाएं तो अच्छा। न जाने कितनी जिंदगियाँ बर्बाद हो गयीं। एक ज़माना था जब इसका भरापूरा परिवार था। घर में बेटे थे। अच्छा काम था सब्ज़ी बेचने का।बस देखते देखते सब ख़ाक हो गया। आज से क़रीब २० साल पहले क़िस्मत ने कुछ ऐसा खेल खेला कि ये आज हालत पैदा हो गए।
बुढ़िया का नाम अशरफ़ी देवी था। अशरफ़ी का बड़ा बेटा कुँवरपाल शादी के लायक होचुका था।बाँका नौजवान था। गाँव की लड़कियाँ आहें भरा करती थीं। तंदुरस्त बदन – अच्छी कमाई – बढ़िया नैन नक़्श बस और क्या चाहिए। कुँवरपाल भी अपने बाँकेपन का ख़ूब फ़ायदा उठाया करता था। गाँव की भाभियों और कुँवारी लड़कियों से नज़दीकियाँ बढ़ाने का कोई मौक़ा हाथ से जाने नहीं देता था। कहीं बेटा बदनाम न हो जाए अशरफ़ी को अब उसका ब्याह करवाना ही था। अलवर के पास भूतों के भानगढ़ से सटे गाँव में उसकी बहन ब्याही थी।अशर्फ़ी ने अपनी बहन से कहकर कुँवरपाल का रिश्ता वहाँ के एक खाते पीते घर में तय कर दिया।जिसने भी लड़की देखी बस यही बोला कि ऐसी दुल्हन सात गाँव में नहीं है। अंग अंग ख़ूबसूरती की मिसाल थी।
मानो किसी ने पद्मावती की मूर्ति बना दी हो।कुँवरपाल भी होश खो बैठा और शादी की तारीख़ के लिए जैसे पागल हो गया। कहते है शादी का हुस्न ही कुछ और होता है। जब दुल्हन बनने वाली लड़की पर हल्दी का रंग चढ़ता है तो उसका नूर एकदम अलग होता है। आपको शायद पता नहोलेकिन ऐसे वक़्त में लड़का लडकी दोनो को घरवाले अलग नहीं छोड़ते। क्योंकि केवल इंसान ही नहीं बल्कि आत्माएँ- भूत – पिशाच – जिन्न आदि भी उस यौवन को पाना चाहते हैं।
आख़िर वो दिन आ गया जब कुँवरपाल की शादी होनी थी। लेकिन शायद यही वो दिन था जबसे इस परिवार के बुरे दिन शुरू होने जा रहे थे। हर कोई पूरे जोश में था।दिल्ली से बारात अलवर पहुँच गयी। हर जगह ढोल नगाड़े और लोकगीतों की आवाज़ें थीं। कुँवरपाल फेरों के लिए बेचैन था। ठीक उसी वक़्त भानगढ़ के खंडहरों से एक पगली औरत गाँव में आयी और चिल्ला चिल्ला कर कहने लगी कि तुम्हारी मौत तुम्हें यहाँ लायी है।लेकिन गाँव के लोगों ने उसे मार कर भगा दिया। शायद ये पहली बड़ी चेतावनी थी। क़ुदरत कभी- कभी संदेश देती है लेकिन इंसान समझ नहीं पाते।
ख़ैर, सुबह के तीन बजे कुँवरपाल और उस लड़की की शादी हो गयी। कुंवरपाल पर मानो पागलपन सवार था अपनी पत्नी को पाने का।पागलपन इस क़दर बढ़ रहा था कि वो खाना पीना भूल सा गया और दुल्हन को छूने की कोशिश करने लगा। उसने जैसे ही अपना हाथ आगे बढ़ाया, दुल्हन ने उसका हाथ मरोड़दिया। कुँवरपाल को जैसे झटका सा लगा।लेकिन उसे लगा मानो जो हुआ वो उसकी कल्पना थी। अब दिल्ली जाने का वक़्त आ गया। दुल्हन रेल में सवार हो गयी और कुँवरपाल हर वक़्त उसके बदन को निहारता जा रहा था। उसके अंदर वासना की आग जलर ही थी। इतनी ख़ूबसूरत दुल्हन को बाहों में भरने की हसरत बढ़ती जा रही थी।
लेकिन हैरानी की बात ये थी की पूरे रास्ते दुल्हन ने किसी भी लड़की से बात तक नहीं की और न ही अपनी सीट से हटी। एक शब्द भी दिल्ली तक नहीं बोला। अशरफ़ी देवी ने अपने बेटे की सेज सजाने का काम पूरा करा लिया था। सीन फ़िल्मी सा था। सफ़ेदचादर – गुलाब के फूलों से ढकी हुई।कमरे में सुहागरात के लिए किसी छोटे राजा जैसे इतंजाम किए गए थे। माहौल ऐसा था मानो कामसूत्र फिर से लिखी जानी हो।
दुल्हन को मेहरौली लाते ही उसे सुहागरात वाले कमरे में भेज दिया गया। लेकिन शाम होने से पहले तक कुंवरपाल को उस कमरे में आसपास भी फटकने की इजाज़त नहीं थी।किसी की नयी नवेली दुल्हन सेज पर हो तो दुल्हे का क्या हाल हो रहा हो इसका अंदाज़ा भी लगाना मुश्किल है। जैसे जैसे रात हुयी – तारे आसमान में आए कुँवरपाल का जानवर जाग सा गया। और वो कमरे की तरफ़ बढ़ गया।
अशर्फ़ी खुश थी कि आज उसका बेटा एक नयी ज़िंदगी की शुरुआत करेगा।कुँवरपाल ने दुल्हन के कमरे का दरवाज़ा खटखटाया लेकिन किसी ने दरवाज़ा नहींखोला। कुँवरपाल मानो मदहोश सा था और उस मदहोशी में जैसे वो एक मस्त हाथी की तरह था। लेकिनश र्मा रही है। अब अशर्फ़ी ने दुल्हन से दरवाज़ा खोलने को कहा। लेकिन दरवाज़ा नहीं ख़ुला।
रात के एक बज गए और घर में जैसे सन्नाटा सा था। आख़िर एक बजे दरवाज़ा खुला और कुँवरपाल कमरे में दाख़िल हुआ और ज़ोर से उसने दरवाज़ा बंद किया। लेकिन बिस्तर पर नग्न पत्नी को देखकर जैसेउ सकी दुनिया ही लूट गयी। वो सहम सा गया और समझने की कोशिश करने लगा कि माजरा क्या है। बड़ी हिम्मत से वो बीवी के पास गया और जैसे हीउसने उसे छूना चाहा आवाज़ आयी कि ये मेरी बीवी है । इसका पति मैं हूँ। इसे छूने की अगर कोशिश तो तुझे ख़त्म कर दूँगा।
कुँवरपाल तो मानो हाथी के पाँव के नीचे आ गया।वासना तो जैसे छूमंतर हो गयी। कमरे में आवाज़ तो थी लेकिन कोई इंसान नहीं था। धीरे धीरे एक बड़ा सा साया सामने आ ही गया। एक दस फीट बड़ा साया पति पत्नी के सामने खड़ा था।यही नहीं धीरे से उस साये ने इंसान की शक्ल ले ली। वो हवा में था और पाँव उसके उलटे थे।ज़बरदस्त बाहुबली सा शरीर था उसका। इंसान चाहे तो भी लड़ न सके।
वो साया बोला। देख कुँवरपाल मैं एक जिन हूँ तूमुझ से नहीं जीत सकता। मैंने इस लड़की के साथ फेरे लिए हैं तो ते मेरी पत्नी है। इसके साथ सम्भोग भी सिर्फ़ मैं ही करूँगा – तू नहीं। दुनिया के लिए तू इसका पति है लेकिन हक़ीक़त में मैं हूँ। मैं तुझे निराश नहीं करूँगा – तू मेरी बीवी को छूना मत इसके लिए हीरे मोती ख़ज़ाने से तेरा घर भर दूँगा। हर रात मेरी सुहागरात होगी। मैंने इस दिन केलिए चार सौ साल इंतज़ार किया है। बोल मंज़ू रहै। कुँवरपाल के पास चारा ही क्या था। सो उसने हाँ भर दी।
हर रात अब वो जिन्न कमरे में जाता और दो बजे तक कुँवरपाल बाहर ही बैठा रहता। जब दरवाज़ा खुलता को बिस्तर पर नग्न बीवी और सोने के सिक्के पड़े होते। अशरफ़ी देवी को कुछ शक हुआ कि घर में कोई है। नयी नवेली दुल्हन पर रौनक़ नहीं है और बेटा भी बुझा बुझा सा है। माँ ने कुँवरपाल से पूछ लिया कि क्या बात है लेकिन कुँवरपाल ने मुँह नहीं खोला। बस माँ के हाथ में सोने के सिक्के रख दिए। सोने के वो सिक्के बेहद पुराने ज़माने के थे। अब अशरफ़ी और परेशान हो गयी।
बेटे ने तो कुछ बताया नहीं लेकिन उसने निगरानी रखने का इरादा बना लिया। रात को जो उसने सारा खेल देखा तो बुढ़िया समझ गयी कि किसी ऊपरी ताक़त ने घर में डेरा डाल दियाहै। वो सुबह होते ही एक मुसलमान फ़क़ीर के पास गयी और आप बीती सुना दी। फ़क़ीर बोला जिनको वो घर में आने से रोक देगा लेकिन उसे बस में नहीं कर सकता। अशरफ़ी ने कहा जोकरना है कर दो बस।
उस फ़क़ीर ने पूरा घर कील दिया और दरवाज़े पर घोड़े की नाल टाँक दी।रात हुयी और जिन आया तो समझ गया कि मामला गड़बड़ है। उसने तुरंत अशरफ़ी से कहा तू जो चाहे ले ले लेकिन मेरी बीवी को मुझसे अलग मत कर। लेकिन अशरफ़ी बोली तू जिन्न है और हम इंसान तेरा और हमारा मेल नहीं खाएगा। देखते ही देखते जिन ग़ुस्से से भर गया और बोला बुढ़िया ये लड़की मेरी है तू इसे ज़िंदा नहीं रख सकती और न ही अपने बेटे को। अगर ये मेरी नहीं हुयी तो किसी की नहीं होगी।
भूखे मरोगे तू सब। ये मेरा श्राप है तुझे। और कहकर वहाँ से चलागया। कहते हैं कि देखते ही देखते वो लड़की सूखती चली गयी और एक दिन चल बसी। कुँवरपाल का काम भी रुक गया और वो दमे का मरीज़ हो गया। रोज़ाना शराब पीने से उसका लीवर खराब होगया और वो ही दम तोड़ गया। ये सारे दुःख देखने के लिए अशरफ़ी देवी ज़िंदा बच गयी। उधर उस जिन्न ने पृथ्वीराज के क़िले में डेरा डाल दिया और अपने अगले शिकार का इंतज़ार करने लगा।