संसद का मानसून सत्र शुरू होते ही मंगलवार को मायावती अचानक सियासी पर्दे पर आकर छा गईं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती सहारनपुर के मुद्दे पर राज्यसभा में बोलने को खड़ी होती हैं, सभापति उन्हें बोलने से रोकते हैं. संसद में रोज ऐसा नजारा देखने को मिलता है. लेकिन यहां हालात कुछ और बन गए. मायावती के तेवर अचानक तल्ख होते हैं और ये कहते हुए वे सदन से बाहर चली जाती हैं कि जब वे अपनी बात नहीं रख सकती तो राज्यसभा की सदस्यता का क्या मतलब. वे ऐलान करती हैं कि आज ही इस्तीफा देंगी और फिर शाम तक इस्तीफा दे देती हैं.
क्या स्क्रिप्टेड था ये पूरा मामला?
विपक्ष का आरोप है कि ये पूरा मामला बस चर्चा में आने के लिए था और स्क्रिप्टेड था. मायावती तीन पेज का इस्तीफा देती हैं और उसमें सहारनपुर से लेकर सी सियासी मुद्दे उठा देती हैं. जबकि नियम ये है कि कोई सदस्य संसद से इस्तीफा देते वक्त बस एक लाइन का इस्तीफा देगा और कोई कारण नहीं बताएगा. इस आधार पर सभापति ये इस्तीफा स्वीकार करेंगे इसकी कम ही संभावना है. मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की कोशिशों के बीच सोमवार को नजारा एकदम बदल गया. कांग्रेस ने मायावती का समर्थन किया और फिर सभी कांग्रेसी सांसदों ने वॉकआउट किया. इस पूरे मुद्दे पर विपक्ष गोलबंद दिख रहा है.
मायावती और विपक्ष को इस मास्टरस्ट्रोक से 5 बड़े सियासी फायदे होते हुए दिख रहे हैं.
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1. राज्यसभा की सीट पक्की कर ली
अप्रैल 2018 में मायावती की राज्यसभा सदस्यता का टर्म पूरा हो रहा था. लोकसभा में बीएसपी का कोई सदस्य नहीं है और यूपी विधानसभा में सिर्फ 19 सदस्यों के वोट से मायावती के लिए राज्यसभा फिर से पहुंच पाना संभव नहीं था. लेकिन अब इस्तीफे के बाद कांग्रेस समर्थन में खड़ी है और आरजेडी चीफ लालू यादव ने मायावती को आरजेडी कोटे से राज्यसभा भेजने की पेशकश की है. इस तरह विपक्षी एकजुटता के बीच मायावती की राज्यसभा में वापसी के कई विकल्प खड़े हो गए हैं.
2. यूपी में सियासी जमीन फिर से हासिल करने का मजबूत आधार
सहारनपुर में दलितों के खिलाफ अत्याचार का मुद्दा उठाते हुए मायावती ने इस्तीफा दे दिया. इस तरह अपने कोर वोट बैंक दलितों के बीच मायावती फिर से चर्चा में आ गईं. पिछले दो चुनाव मायावती के लिए काफी बुरे परिणाम वाले रहे थे. 2014 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी का खाता भी नहीं खुल सका था. जबकि विधानसभा चुनाव में बसपा 80 से घटकर सिर्फ 19 सीटों पर आ गई. चुनाव के बाद मायावती और अखिलेश साथ आने का ऐलान कर चुके हैं. अब मायावती फिर से यूपी में अपनी खोई हुई सियासी जमीन तैयार करने की तैयारी में हैं और ये सियासी मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है.