उर्दू ज़बान की तरक्क़ी का परचम हमारे अपने हांथो में है: आसिफ़ ज़मां रिज़वी 

लखनऊ, आल इन्डिया उलमा बोर्ड के तहत स्वर्गीय नसीमुद्दीन सिद्दिक़ी (पूर्व विधायक) की स्मृति में ‘हिस्दुस्तान में उर्दू ज़बान का मुस्तकबिल’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन उत्तर प्रदेश उर्दू अकादेमी के सभागार में आयोजित किया गया जिसकी अध्यक्षता उलमा बोर्ड के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुफ़्ती मुदस्सिर खान ने की I

 संगोष्ठी के विषय पर अपने विचार रखते हुए एजाज़ रिज़वी कॉलेज आफ़ जर्नालिस्म एंड मास कम्युनिकेशन के डायरेक्टर आसिफ़ ज़मां रिज़वी ने कहा कि हिंदुस्तान में उर्दू ज़बान का मुस्तकबिल हमारे और आपके हांथों में है क्योंकि हम ही इसका परचम लेकर चलने वालों में से हैं I लेकिन मौजूदा हालत में उर्दू ज़बान पर आसिफ़ ज़मां रिज़वी ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा कि आज हम अपने घर के बच्चों को उर्दू ज़बान से महरूम कर रहे हैं I हमारा ध्यान अंग्रेज़ी और हिंदी कि तरफ तो होता है लेकिन उर्दू हमारे दायरे से दूर होती जा रही है I उन्होंने कहा कि आज व्हाट्स अप्प का ज़माना है, हम में से कितने लोग रात का गुड नाईट मेसेज और सुबह का गुड मोर्निंग मेसेज उर्दू में भेजते हैं, और अगर भेजते भी हैं तो कितने लोग उसको पढ़ पाते हैं I आसिफ़ ज़मां रिज़वी ने कहा की हमको अब सचेत होने की ज़रुरत है I उन्होंने कहा  कि आज कॉलेज और यूनिवर्सिटी में उर्दू विषय में मुश्किल से 8-10 दाखिले होते हैं जबकि दूसरी ज़बान के विषयों में 100 के ऊपर दाखिले होते हैं इसकी वजह ये है कि हमारे घरों के बच्चे उर्दू जानते ही नही हैं I आसिफ़ ज़मां रिज़वी ने अफ़सोस ज़ाहिर करते हुए कहा कि अगर अख्बारत में देखें तो जो विज्ञापन हिंदी या अंग्रेज़ी अखबार में पचास हज़ार का छपता है वही विज्ञापन उर्दू अख़बार पांच हज़ार में छापता है क्योंकि उर्दू अखबार में लोग विज्ञापन देना पसंद नहीं करते और उसकी वजह ये है कि आज उर्दू अखबार की रीडरशिप और सर्कुलेशन बहुत कम हो गया है I आये दिन उर्दू वालों के मेसेज आते हैं हम लोगों को उर्दू ज़बान को जिंदा रखने के लिए उर्दू अखबार अपने घर में ज़रूर मंगाना चाहिए जिससे उर्दू की खिदमत करने वालों का भी भला हो सके I उनहोंने कहा कि वो उर्दू की इस हालत को पिछले चालीस साल से देखते चले आरहे हैं जिसमें कोई इज़ाफ़ा या तरक्क़ी नहीं हुई है I आसिफ़ रिज़वी ने आगे कहा कि क्यों आज भी हम मीर अनीस, प्रेमचंद और इक़बाल जैसे शायर को ही उर्दू में पढ़ा रहे हैं, आज कोई इन जैसा शायर क्यों नहीं पैदा हुआ ? उनहोंने आगे कहा कि सरकारी इदारे राष्ट्रीय और प्रदेश स्तर  पर उर्दू के फरोग़ के लिए हैं लेकिन हम लोग खुद उर्दू को बढ़ावा नही दे रहे हैं I उन्होंने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि आज जब उर्दू ज़बान के मुस्तकबिल कि बात की जा रही है तो सभागार में सिर्फ़ एक चौथाई ही लोग हैं और बाक़ी सभागार ख़ाली है I 
अपनी बात ख़त्म करते हुए आसिफ़ ज़मां रिज़वी ने कहा कि अगर हम वाक़ई उर्दू ज़बान का मुस्तकबिल हिन्दुस्तान में रौशन चाहते हैं तो हम सबको अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी खुद उठानी पड़ेगी जिससे उर्दू का फरोग और तरक्क़ी हो सके I

कार्यक्रम में शफात हुसैन को बोर्ड कि तरफ सामाजिक कार्यों के लिए वीर सावरकर अवार्ड से नवाज़ा गया, ज़र्गामुद्दीन को पत्रकारिता और मो.अनीस को शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए ज़वार्ड दिया गया I कार्यक्रम का संचालन उलमा बोर्ड के महासचिव मो.रशीद नसीम ने किया जिसमें बोर्ड के विभिन्न प्रदेशों से आये सदस्यों ने शिरकत की I

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com