उत्तराखंड में गरमाएगा लोकायुक्त का मुद्दा, अन्ना के आने से मिलेगी हवा
उत्तराखंड में गरमाएगा लोकायुक्त का मुद्दा, अन्ना के आने से मिलेगी हवा

उत्तराखंड में गरमाएगा लोकायुक्त का मुद्दा, अन्ना के आने से मिलेगी हवा

देहरादून: भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की घोषित सर्वोच्च प्राथमिकताओं में है। इसके बावजूद राज्य में लोकायुक्त का गठन दस माह से लटका हुआ है। इसे लेकर सरकार की मंशा पर विपक्ष भी सवाल खड़े कर रहा है। अब अन्ना हजारे की उत्तराखंड में आमद के साथ ही इस मसले पर सियासत का गर्माना तय है। वहीं विपक्ष इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी में है। ऐसे में 20 मार्च से गैरसैंण में शुरू हो रहे बजट सत्र के हंगामेदार रहने के आसार हैं।उत्तराखंड में गरमाएगा लोकायुक्त का मुद्दा, अन्ना के आने से मिलेगी हवा

भ्रष्टाचार को लेकर एक ओर जीरो टॉलरेंस के दावे का शोर है तो दूसरी ओर भ्रष्टाचार पर लगाम कसने को लोकायुक्त विधेयक पर साधी गई रहस्यमयी लंबी चुप्पी। सत्ता में आने के सौ दिन के भीतर लोकायुक्त कानून पर अमल का चुनावी वायदा दस माह की अवधि को भी लांघ चुका है। भ्रष्टाचार को लेकर सरकार अपना दामन पाक-साफ रखने का दावा भी करे और लोकायुक्त के गठन से मुंह भी चुराए, लंबे समय तक ये हालात बनाए रखना सरकार के लिए आसान नहीं रहने वाला है।

प्रदेश में भाजपा भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस और सुशासन के लुभावने वायदों के जरिये सत्ता की सीढ़ियां चढ़ने में कामयाब रही है। ये जन भावनाओं का दबाव ही है कि मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत गाहे-बगाहे भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस को अपनी सर्वोच्च प्राथमिकताओं में गिना रहे हैं। यह दीगर बात है कि भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस के दावे के बावजूद इस दिशा में लोकायुक्त के गठन के रूप में की जाने वाली पहल अब तक नहीं हो पाई। हालांकि, भाजपा ने विधानसभा चुनाव के अपने घोषणापत्र में सत्ता में आते ही सौ दिन के भीतर लोकायुक्त की स्थापना करने का वायदा किया था। यह वायदा कब तक पूरा होगा, फिलहाल इसका जवाब सत्तारूढ़ दल के पास भी नहीं है।

सदन में पेश हो चुकी प्रवर समिति की रिपोर्ट 

लोकायुक्त विधेयक पर प्रवर समिति की रिपोर्ट को बीते वर्ष जून माह में सदन के पटल पर रखा जा चुका है। लेकिन, सात महीने से ज्यादा वक्त गुजर चुका है, लेकिन प्रवर समिति की सिफारिशों के साथ लोकायुक्त विधेयक कानून की शक्ल नहीं ले पाया है। वहीं लोकायुक्त विधेयक के साथ ही प्रवर समिति की सिफारिशों समेत सदन में रखा गया संशोधित तबादला विधेयक विधानसभा में पारित होने के बाद एक्ट के रूप में अस्तित्व में आ चुका है। 

आंदोलन की देन सशक्‍त लोकायुक्‍त 

अन्ना हजारे के अगले हफ्ते उत्तराखंड का दौरा करने से सरकार की पेशानी पर बल पड़े हुए हैं। अन्ना के आने से लोकायुक्त के मुद्दे पर सियासत तेज होना तय माना जा रहा है। अन्ना देहरादून जिले समेत विभिन्न स्थानों पर जन सभाओं को संबोधित करने वाले हैं। वर्ष 2011 में अन्ना की ओर से छेड़े गए जन आंदोलन के चलते ही भाजपा की पिछली खंडूड़ी सरकार ने जन लोकपाल की तर्ज पर सशक्त लोकायुक्त विधेयक पारित किया था। यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून तो बना, लेकिन पिछली कांग्रेस सरकार ने इसे संशोधित कर नया रूप दे दिया था।भाजपा खंडूड़ी के लोकायुक्त कानून को दोबारा अमल में लाने के वायदे के साथ विधानसभा चुनाव में जनता के बीच गई थी। 

लोकायुक्त पर यूं रही नई सरकार की चहलकदमी

बीते वर्ष 2017 में मार्च माह में प्रदेश में भाजपा सरकार बनते ही पहले विधानसभा सत्र में लोकायुक्त विधेयक को सदन के पटल रखा गया। बाद में इस विधेयक को विधानसभा की प्रवर समिति के सुपुर्द कर दिया गया। 

-वर्ष 2017 में जून माह में बजट सत्र के अंतिम दिन सरकार ने विपक्ष को सकते में डाल लोकायुक्त विधेयक को प्रवर समिति की सिफारिशों के साथ सदन के पटल पर रख दिया। सरकार के इस कदम को सौ दिन में लोकायुक्त कानून बनाने के भाजपा के वायदे पर अमल के रूप में प्रचारित किया गया।

-दिसंबर माह में गैरसैंण में आयोजित विधानसभा सत्र में लोकायुक्त विधेयक पर सदन में चर्चा नहीं हुई। 

सरकार की नीयत पर ही सवाल उठा रहा विपक्ष 

राज्य में लोकायुक्त के गठन को लेकर सरकार की मंशा पर विपक्ष खासतौर पर कांग्रेस सवाल खड़े करती रही है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत इस मामले में भाजपा पर खासे हमलावर हैं। इस मामले में उन्होंने केंद्र सरकार को भी निशाने पर लिया है। उनका कहना है कि उनकी सरकार में लोकायुक्त के गठन के लिए राजभवन में पैनल भेजा गया, लेकिन राजभवन ने जानबूझकर पैनल को लौटा दिया। यह किसके इशारे पर हुआ, ये सामने आना चाहिए। 

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रीतम सिंह और नेता प्रतिपक्ष डॉ इंदिरा हृदये लोकायुक्त मामले में राज्य सरकार की नीयत पर सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि लोकायुक्त का जल्द गठन किया जाना चाहिए। सरकार को किस बात का डर है, उसे बताना चाहिए। 

उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत का कहना है कि लोकायुक्त के लिए दिल्ली में भी जागर (देवी-देवताओं का आह्वान) लगाने होंगे। साथ में यह भी पूछना होगा अन्ना कहां हो, केजरी कहां हो। लोकायुक्त दिल्ली में ही नहीं है तो उत्तराखंड में कैसे आ सकता है। राज्य की भाजपा सरकार केंद्र के इशारे पर ही काम कर रही है।

Powered by themekiller.com anime4online.com animextoon.com apk4phone.com tengag.com moviekillers.com