उत्तराखंड: डेंगू शॉक सिंड्रोम की जद में आए मरीजों को जान का खतरा, लगातार मरीजों की संख्या बढ़ रही

उत्तराखंड में डेंगू अब विकराल होता जा रहा है। दिन प्रतिदिन न केवल मरीजों की संख्या बढ़ रही है, बल्कि यह बीमारी अब जानलेवा होने लगी है। स्वास्थ्य विभाग डेंगू का स्ट्रेन कमजोर और स्थिति सामान्य बता रहा था। पर डेंगू शॉक सिंड्रोम से हुई मौत ने इन दावों की पोल खोलकर रख दी है। डेंगू शॉक सिंड्रोम का शहर में यह पहला मामला नहीं है, बल्कि कई मरीज इसकी जद में हैं। 

गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय के वरिष्ठ फिजीशियन डॉ. प्रवीण पंवार के अनुसार ज्यादातर लोगों को साधारण डेंगू ही होता है, जो उपचार लेने व कुछ परहेज करने से ठीक हो जाता है। 

उन्होंने बताया कि डेंगू हैमरेजिक व शॉक सिंड्रोम गंभीर श्रेणी में आता है। शुरुआत में सामान्य-सा लगने वाला यह बुखार देरी या गलत इलाज से जानलेवा साबित हो सकता है। डेंगू से कई बार मल्टी ऑर्गन फेल्योर भी हो जाता है। इसमें सेल्स के अंदर मौजूद फ्लूइड बाहर निकल जाता है। पेट के अंदर पानी जमा हो जाता है। लंग्स और लिवर पर बुरा असर पड़ता है और ये काम करना बंद कर देते हैं। 

तीन प्रकार का होता है डेंगू

क्लासिकल डेंगू 

साधारण डेंगू में अचानक तेज बुखार आता है। सिरदर्द, मांसपेशियों व च्वाइंट में दर्द होता है। आंखों के पिछले हिस्से में भी दर्द हो सकता है। कमजोरी और भूख न लगना भी इसके लक्षण हैं। गले में हल्का दर्द, शरीर पर किसी भी हिस्से में लाल-गुलाबी चकत्ते या रैशेज हो जाते हैं। डेंगू का यह बुखार 5 से 7 दिन तक रहता है।

हैमरेजिक डेंगू 

साधारण डेंगू बुखार के लक्षणों के साथ-साथ नाक और मसूढ़ों से खून आना, शौच के दौरान और उल्टी के साथ ब्लड आना। चमड़ी पर नीले-काले रंग के छोटे-छोटे या बड़े चकत्ते उभर आते हैं।

डेंगू शॉक सिंड्रोम 

इन लक्षणों के साथ-साथ यदि मरीज को बहुत अधिक बैचेनी, तेज बुखार, चमड़ी पर ठंडक महसूस होना, होश खोने जैसी स्थिति, मरीज की नाड़ी कभी तेज, कभी धीरे चलना, ब्लड प्रेशर एकदम से नीचे चला जाना भी इसके लक्षण हैं। यह काफी खतरनाक स्थिति तक मरीज को पहुंचा सकता है। 

21 और मरीजों में डेंगू की पुष्टि 

डेंगू का कहर बढ़ता ही जा रहा है। आए दिन डेंगू के नए मरीज सामने आ रहे हैं। ताजा रिपोर्ट में देहरादून में 21 और लोगों में डेंगू की पुष्टि हुई है। इनमें 11 पुरुष व 10 महिलाएं हैं। सभी मरीज अलग-अलग क्षेत्रों के रहने वाले हैं। इस तरह दून में डेंगू के मरीजों की संख्या बढ़कर 562 पहुंच गई है। अन्य जनपदों से डेंगू के18 मामले अब तक सामने आए हैं। ऐसे में प्रदेश में मरीजों का अब तक का आंकड़ा 580 तक पहुंच गया है। 

डेंगू के बढ़ते प्रकोप से स्वास्थ्य महकमा भी हलकान है। शासन-प्रशासन में अधिकारी बार-बार निर्देश दे रहे हैं कि डेंगू पीड़ितों के उपचार में किसी भी प्रकार की लापरवाही न बरती जाए। विभागीय अधिकारियों का कहना है कि प्रभावित क्षेत्रों का दौरा किया गया है। लोगों को बीमारी की रोकथाम व बचाव की जानकारी दी गई। साथ ही अपने आसपास खाली बर्तनों में पानी एकत्र नहीं होने देने व स्वच्छता बनाए रखने के लिए कहा गया है। 

स्टाफ की कमी पूरी 

डेंगू के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए अब पूरा सरकारी अमला इसकी रोकथाम में जुटा है। स्वास्थ्य सचिव नितेश झा के निर्देश पर राजधानी के तीन सरकारी अस्पतालों दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल, कोरोनेशन और गांधी अस्पताल में नर्स और लैब टेक्नीशियन मिल गए हैं। सोमवार को राजकीय नर्सिंग कॉलेज से बीएससी, एमएससी करने गई नर्सों समेत फाइनल ईयर के छात्र मिलाकर 21 लोगों का स्टाफ तीनों अस्पतालों में भेजा गया है। 

इसके अलावा तीन निजी कॉलेजों से 50 नर्सिंग एवं पैरामेडिकल स्टाफ मिला है। दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा ने बताया कि तीनों अस्पतालों को बराबर-बराबर कर्मचारी बांट दिए गए हैं।

व्यवस्थाएं सुधारने की मांग 

राजपुर रोड के पूर्व विधायक राजकुमार ने डेंगू के मरीजों को समुचित उपचार देने की मांग की है। इस संदर्भ में उन्होंने दून मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉ. आशुतोष सयाना को पत्र भेजा है। अस्पताल परिसर में व्यवस्थाएं सुधारने की मांग की है।

डेंगू के साथ-दून के अस्पतालों में जगह नहीं, बेड मिलना मुश्किल

डेंगू, वायरल बुखार और मौसमी बीमारियों के चलते राजधानी के सभी सरकारी अस्पताल पूरी तरह पैक हैं। अस्पतालों में वार्डों के साथ ही इमरजेंसी भी फुल हो गई है। इसके नए मरीजों को भर्ती करने में दिक्कत आ रही है। अस्पताल से मरीजों को बिना उपचार के लौटाया जा रहा है। लिहाजा गरीब मरीज प्राइवेट अस्पतालों में अपने खर्च पर उपचार कराने को मजबूर हैं। इससे उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ रहा है। 

सबसे ज्यादा भीड़ राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल में है। भीड़ का आलम यह है कि पिछले कई दिन मरीज स्ट्रेचर पर लेटकर इलाज कराने को मजबूर हैं। बेड खाली नहीं होने के कारण इन्हें इमरजेंसी में ही स्ट्रेचर पर रखा गया है। 

अस्पताल के वार्ड और इमरजेंसी में बिल्कुल भी जगह खाली नहीं है। मरीजों की बढ़ती संख्या को देखते हुए अस्पताल प्रशासन ने वैकल्पिक इंतजाम किए हैं, लेकिन मरीजों की भीड़ के चलते यह नाकाफी साबित हो रहा है। अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा के अनुसार अस्पताल में क्षमता से कहीं अधिक मरीज आ रहे हैं। ऐसे में मरीज भर्ती करने में दिक्कत आ रही है। गैलरी में अतिरिक्त बेड लगाए गए हैं, पर ये इंतजाम भी नाकाफी साबित हो रहे हैं। उधर, प्रेमनगर, कोरोनेशन, रायपुर व गांधी शताब्दी नेत्र चिकित्सालय में भी कमोबेश यही स्थिति है।

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