नई दिल्ली। दिसंबर, 2017 में जीएसटी काउंसिल की 24वीं बैठक में अंतरराज्यीय माल परिवहन के लिए एक फरवरी, 2018 से ई-वे बिल लागू करने की घोषणा की गई थी। जनवरी मध्य से इसका ट्रायल भी शुरू हो गया था। पहली फरवरी को जब सकारात्मक बजट से उत्साहित उद्योग जगत ई-वे बिल का स्वागत करने को तैयार था, तभी पोर्टल क्रैश हो गया। ई-वे बिल एक बार फिर अगले नोटिस तक के लिए टल गया।
कहने की जरूरत नहीं कि ई-वे बिल की परिकल्पना की शुरुआत से ही सकारात्मक एवं नकारात्मक दोनों तरह के विचार दिखे हैं। ट्रायल फेज में जितने ई-वे बिल जेनरेट हुए, वे इस बात का प्रमाण हैं कि कारोबारी और ट्रांसपोर्टर्स इसके सुनहरे पहलू को देख रहे हैं। ऐसे में ठीक शुरुआत के दिन ही पोर्टल का बैठ जाना हतोत्साहित करता है। हमें ई-वे बिल के दीर्घकालिक फायदों को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। ई-वे बिल में ‘एक देश, एक बाजार, एक कर’ बनाने की क्षमता है।
वस्तुओं की अंतरराज्यीय आवाजाही में राज्यों की सीमा पर होने वाला खर्च और लगने वाला समय ट्रांसपोर्टर्स के लिए बड़ी समस्या रहा है। प्रत्येक राज्य का घोषणा पत्र, परमिट और वे-बिल का अपना फॉर्मेट होता है। इसमें मानवीय हस्तक्षेप के चलते भ्रष्टाचार की गुंजाइश रहती है। ई-वे बिल ऐसी कई समस्याओं का समाधान कर सकता है। सप्लायर और ट्रांसपोर्टर सभी को इसके समर्थन में आना चाहिए।
ई-वे बिल कर चोरी रोकने और समय बचाने में बड़ी भूमिका निभा सकता है। इसके लिए आसान प्रक्रिया जरूरी है ताकि कम तकनीकी समझ वाले भी आसानी से इससे जुड़ सकें। यह कहा जा सकता है कि राज्यों के भीतर व अंतरराज्यीय माल परिवहन में ई-वे बिल की व्यवस्था सुचारू ढंग से काम करने लग तो हम एक देश-एक कर की दिशा में और आगे बढ़ सकेंगे। इससे वाणिज्य एवं विकास की निरंतर एवं अभूतपूर्व गति देखने को मिल सकती है।