ईद-उल-फितर इनाम और इबादत का दिन है और इस दिन हम अल्लाह का शुक्र अदा करते हैं कि अल्लाह ने हमें रोजा रखने की तौफीक और रूहानी तरक्की अता फरमाई. गुनाहों से महफूज रखा.

वहीँ कहते हैं माह-ए-रमजान में ही कुरान-ए-करीम नाजिल हुआ और ईद इसका जश्न भी है. रोजेदारों ने रोजे रखे, पूरे महीने इबादत की, कामयाबी हासिल की, ईद-उल-फितर उसका भी जश्न है और पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्ल.) बड़ी सादगी से ईद मनाया करते थे. एक बार हज़रत मुहम्मद ईद के दिन सुबह-सवेरे बाजार गए. रास्ते में आपको एक छोटा बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया. हजरत मुहम्मद उसके पास गए तो बच्चे ने बताया कि आज ईद का दिन है और उसके पास नए कपड़े तक नहीं हैं. हजरत मुहम्मद ने बच्चे को पुचकारा और घर ले आए. बच्चे से कहा हजरत आयशा उस बच्चे की मां और बेटी फातिमा उसकी बहन हैं, हुसनैन उसके भाई हैं. बच्चे को नए कपड़े पहनाए और उसे खूब प्यार दिया. इससे बच्चा इतना प्रभावित हुआ कि वह मक्का की गलियों में दौड़ा और कहने लगा कि आज ईद का दिन है. आयशा उसकी मां, फातिमा उसकी बहन और हसनैन उसके भाई हैं.
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