आज 16 मार्च को शीतलाष्टमी मनाई जा रही है. इस व्रत को ‘बसौड़ा’ भी कहा जाता है. यह व्रत मां शीतला को समर्पित माना जाता है. मां शीतला की पूजा करने से शरीर निरोगी होता है और रोग दोष दूर होते हैं. मां शीतला की पूजा के बाद आरती और व्रत कथा का पाठ करना होता है. इसके बिना यह व्रत अधूरा माना जाता है. अगर आपको मां शीतला की आरती याद नहीं है या आपके पास व्रत की किताब नहीं है तो आप यहां मां शीतला की आरती और व्रत कथा दोनों पढ़ सकते हैं…
शीतला अष्टमी की कथा
शीतला अष्टमी की पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले की बात है जब एक वृद्ध महिला और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता का व्रत रखा. शीतला मां के इस व्रत में उनको बासी चावल को भोग लगाया जाता है और इसे ही प्रसाद के तौर पर दिया जाता है. लेकिन दोनों बहुओं को यह बात पता नहीं थी. इसलिए उन्होंने अष्टमी के दिन सुबह ताज़ा खाना बना लिया. क्योंकि हाल ही में दोनों की संताने हुई थीं, इस वजह से दोनों को डर था कि बासी खाना उन्हें नुकसान ना पहुंचाए. सास को ताज़े खाने के बारे में पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई. कुछ क्षण ही गुज़रे थे, कि पता चला कि दोनों बहुओं की संतानों की अचानक मृत्यु हो गई. इस बात को जान सास ने दोनों बहुओं को घर से बाहर निकाल दिया.
अपने बच्चों के मृत शरीर को लेकर दोनों बहुएं घर से निकल गईं. बीच रास्ते वो विश्राम के लिए रूकीं. वहां उन दोनों को दो बहनें ओरी और शीतला मिली. दोनों ही अपने सिर में जूंओं से परेशान थी. उन बहुओं को दोनों बहनों को ऐसे देख दया आई और वो दोनों के सिर को साफ करने लगीं. कुछ देर बाद दोनों बहनों को आराम मिला, आराम मिलते ही दोनों ने उन्हें आशार्वाद दिया और कहा कि तुम्हारी गोद हरी हो जाए.
ये बात सुन दोनों बुरी तरह रोने लगीं और उन्होंने महिला को अपने बच्चों के शव दिखाए. ये सब देख शीतला ने दोनों से कहा कि उन्हें उनके कर्मों का फल मिला है. ये बात सुन वो समझ गईं कि शीतला अष्टमी के दिन ताज़ा खाना बनाने की वजह से ऐसा हुआ. यह बात जानकार दोनों ने माता शीतला से माफी मांगी और आगे से ऐसा ना करने को कहा. इसके बाद माता ने दोनों बच्चों को फिर से जीवित कर दिया. इस दिन के बाद से पूरे गांव में शीतला माता का व्रत धूमधाम से मनाए जाने लगा.
शीतला अष्टमी की आरतीजय शीतला माता, मैया जय शीतला माता।
आदि ज्योति महारानी, सब फल की दाता॥