इस मंदिर से जुड़ा है बहुत बड़ा रहस्य, यहां हर रोज आते हैं वो “दो लोग” जिनकी कभी नहीं होगी मृत्यु !

इस मंदिर से जुड़ा है बहुत बड़ा रहस्य, यहां हर रोज आते हैं वो “दो लोग” जिनकी कभी नहीं होगी मृत्यु !

उत्तर में जैसे लोग मां दुर्गा के दर्शन के लिए पहाड़ों को पार करते हुए वैष्णो देवी तक पहुंचते हैं। ठीक उसी तरह मध्य प्रदेश के सतना जिले में मैहर शारदा माता का एक प्रसिद्ध मंदिर है. मैहर नगरी से लगभग 5 किलोमीटर की दूरी पर शारदा माता का मंदिर है. यह न सिर्फ आस्था का केंद्र है, अपितु इस मंदिर के विविध आयाम भी हैं. इस मंदिर की चढ़ाई के लिए 1063 सीढ़ियों का सफर तय करना पड़ता है. इस मंदिर में दर्शन के लिए हर वर्ष लाखों की भारी भीड़ जमा होती है.

इस मंदिर से जुड़ा है बहुत बड़ा रहस्य, यहां हर रोज आते हैं वो “दो लोग” जिनकी कभी नहीं होगी मृत्यु !मौजूदा खबर अनुसार बता दें कि पूरे भारत में सतना का मैहर मंदिर माता शारदा का अकेला मंदिर है. इसी पर्वत की चोटी पर माता के साथ ही श्री काल भैरवी, भगवान, हनुमान जी, देवी काली, दुर्गा, श्री गौरी शंकर, शेष नाग, फूलमति माता, ब्रह्म देव और जलापा देवी की भी पूजा की जाती है. स्थानीय परंपरा के अनुसार लोग माता के दर्शन के साथ- साथ दो महान योद्धाओं आल्हा और ऊदल, जिन्होंने पृथ्वी राज चौहान के साथ भी युद्ध किया था का भी दर्शन अवश्य करते हैं.

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यदि कोई व्यक्ति रात के समय यहां रूकने की चेष्टा करता है तो वह अगली सुबह नहीं देख पाता. मौत के आगोश को प्राप्त हो जाता है. इन दोनों ने ही सबसे पहले जंगलों के बीच शारदा देवी के इस मंदिर की खोज की थी. इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था. माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था.

गौरतलब है कि आल्हा माता को शारदा माई कह कर पुकारा करता था. तभी से ये मंदिर भी माता शारदा माई के नाम से प्रसिद्ध हो गया. आज भी यही मान्यता है कि माता शारदा के दर्शन हर दिन सबसे पहले आल्हा और उदल ही करते हैं. मंदिर के पीछे पहाड़ों के नीचे एक तालाब है, जिसे आल्हा तालाब कहा जाता है. तालाब से 2 किलोमीटर और आगे जाने पर एक अखाड़ा मिलता है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां आल्हा और उदल कुश्ती लड़ा करते थे.

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बताते चलें कि मैहर माता का मंदिर सिर्फ रात्रि 2 से 5 बजे के बीच बंद किया जाता है, इसके पीछे एक बड़ा रहस्य छुपा है. मान्यता के अनुसार आल्हा और ऊदल आज तक इतने वर्षों के बाद भी माता के पास आते हैं. रात्रि 2 से 5 बजे के बीच आल्हा और ऊदल रोज मंदिर में आकर माता रानी का सबसे पहले दर्शन करते हैं और माता रानी का पूरा श्रृंगार करते हैं.

 

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