इस कारण अटल बिहारी वाजपेयी ने नहीं की थी शादी, वजह जानकर रह जायेंगे दंग

जब भी हमारे देश मे महान नेताओ का नाम सामने आता है तो ये बात कॉमन होती है कि सब कुँवारे होते हैं जैसे – महान एपीजे अब्दुल कलाम, लाल कृष्ण आडवाणी, यहां तक कि महान अभिनेता सलमान खान और बेस्ट डायरेक्टर करण जौहर आदि. जब भी इन सबका नाम आता है तो एक नाम खुद ब खुद जुड़ जाता है और वो नाम हैं अटल बिहारी बाजपेयी का, सभी जानते हैं कि अटल जी कुँवारे हैं लेकिन किसी को भी इस कुँवारेपन की वजह नही मालूम हो सकी. कल 25 दिसम्बर को अटल बिहारी बाजपेयी का जन्मदिन था तो इस खास अवसर पर आपको मिलेगा जवाब आखिर क्यों कुँवारे रहे अटल बिहारी जी?

सिद्धांतों की राजनीति पर अडिग

खुद को स्वार्थ की भावना से काफी दूर रख अटल जी ने अपनी पूरी जिंदगी निस्वार्थ स्वभाव से देश की सेवा में देश के नागरिकों के प्रति समर्पित कर दी. जिंदगी में आने वाली हर एक चुनौतियों को स्वीकार कर उनके माकूल जवाब देने में माहिर अटल जी ने दुनिया को उस वक़्त अपनी ताकत दिखा दी जब उन्होंने अमेरिका जैसे ताकतवर देशों की बात को ठेंगा दिखाकर पहली बार खुद की टेक्नोलॉजी के दम पर पोखरण में सफल परमाणु परीक्षण कर दुनिया की उस वक़्त की महाशक्तियों को खुलेआम चुनौती दी थी.

यूपी से था खास लगाव

आमतौर पर आगरा के निवासी सरदार वल्लभ भाई पटेल का जन्म भले ही मध्यप्रदेश में हुआ हो पर उनका राजनीतिक लगाव हमेशा से ही उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ से रहा था. लखनऊ से ही सांसद रह चुके अटल जी ने अपनी जिंदगी में कुछ ऐसी कविताएं लिखी जो हमेशा से ही लोगों के बीच काफी चर्चित रही. उनकी चर्चित कविताओं की कुछ पंक्तियाँ आज भी याद की जाती है जिनमे से की सबसे प्रसिद्ध ” मेरी कविता जंग का एलान है, पराजय की प्रस्तावना नहीं. वह हारे हुए सिपाही का नैराश्य-निनाद नहीं, जूझते योद्धा का जय संकल्प है. वह निराशा का स्वर नहीं आत्मविश्वास का जयघोष है” इत्यादि है.

इस वजह से रहे कुँवारे

पहली बार राजनीति में अपनी कदम रखने के बाद से ही हमेशा प्रगतिशील रास्ते पर चलते हुए जब अटल जी की पार्टी की सरकार 1996 में बनी तो वह सरकार उस वक़्त एक मत के कारण गिर गई. मात्रा 13 दिन तक चलने वाली उस सरकार के गिरने के बाद भी बाजपेयी ने जी ने कभी हार नही मानी और कुछ समय बढ़ फिर से सरकार को वापस लाने की ठान चुके बाजपेयी जी ने कुछ वक्त बाद ही सरकार बनाकर खुद देश के प्रधानमंत्री बने। देश के प्रति निस्वार्थ सेवा करने के मकसद से ही उन्होंने कभी शादी न करने का प्रण लिए और आजीवन कुँवारे ही रहें.

विपक्ष भी विचारों का कायल

अपनी पूरी जिन्दगी राजनीति में झोंक देने वाले वाजपेयी जी हमेशा से ही वैचारिकत को तवज़्ज़ो डॉय करते थे.  उनकी सोच के मुताबिक राजनीति में आप सिर्फ खुद की सोच को तवज़्ज़ो नही दे सकते बल्कि आपको सारी जनता की आवज़ भी सुन्नी पड़ती है. जिस जनता ने आपको यहाँ तक पहुँचाया अगर आप उनकी बातों को अनसुना कर देंगे तो आप राजनीति के इस खेल से हमेशा के लिए बाहर हो जाएंगे.

जिंदगी में हमेशा संगर्ष करने वाले अटल जी ने अपने कैरियर की शुरुआत एक पत्रकारिता से की और यही से उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की आधारशिला भी रखी. संयुक्त राष्ट्र संघ में भारत की ओर से पहली बार हिंदी में भाषण देकर अटल जी ने दुनिया के सामने देश का मान बढ़ाया।

हर जिम्मेदारी को निभाया

देश मे विपक्ष के एक हो जाने के बाद जब मोरारजी देसाई की सरकार बनी तो उस वक़्त अटल जी को विदेशमंत्री की कुर्सी दी गयी. उस वक़्त उन्होंने अपनी कुशलता दिखाते हुए लोगो के ऊपर एक ऐसी छाप छोड़ी जो कि अमिट है. पर वर्ष 1980 में जनता पार्टी की हुई हार के बाद उन्होंने इस पार्टी का दामन छोड़ भारतीय जनता ओरटी की कमान संभाली जहाँ उन्हें अध्यक्ष की कुर्सी शुरुआत में ही मिल गई. इंदिरा गांधी के द्वारा किये गए अच्छे कार्यो की सराहना करने के बाद उनकी विचारधारा का विरोध हर कोई कर रहा था पर उन्होंने इसकी ओर कोई ध्यान नही दिया।

चुनौतियों का डटकर किया सामना

लाल बहादुर शास्त्री के द्वारा दिये गए नारे को उन्होंने बदल कर “जय जवान जय किसान जय विज्ञान” कर दिया. देश की सुरक्षा से कभी भी समझौता न करने के मकसद से ही वैश्विक चुनौतियाँ होने के बावजूद उन्होंने 1998 में पोखरण में परमाणु परीक्षण कर पूरी दुनिया को दिखा दिया. जिसके बाद जस परीक्षण से बौखलाए अमेरिका ने भारत के ऊपर कई सारे प्रतिबंध लगाया पर भारत के लोगो का साथ मिलने की वजह से उनके ऊपर इन सभी प्रतिबंधों का कोई असर नही हुआ. उनकी दृढसंकल्प और दृढ़शक्ति का ही नतीजा था कि पाकिस्तान से युद्ध होने के दौरान काफी कम मात्रा में रिसोर्सेज उपलब्ध होने के बाद भी उन्होंने पाकिस्तान को धूल चटवा दिया।

 

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