पाकिस्तान की दम तोड़ती अर्थव्यवस्था, विदेश नीति और विकास के मुद्दों पर संकटों का सामना कर रही प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार को एक शख्स ने हिलाकर रख दिया है। इमरान के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आजादी मार्च निकाला जा रहा है। लेकिन क्या आप जानते हैं यह सब किसके कारण हो रहा है। दरअसल, यह शख्स और कोई नहीं पाकिस्तान की सबसे बड़ी धार्मिक पार्टी के मुखिया मौलाना फजल-उर-रहमान हैं। इन्हें मौलाना डीजल भी कहा जाता है, जो पहले भी कई नेताओं की परेशानी का सबब बन चुके हैं।

मौलाना फजल-उर-रहमान सुन्नी कट्टरपंथी दल या यूं कहें कि पाकिस्तान की धार्मिक पार्टी जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम के प्रमुख हैं। उनके पिता खैबर पख्तूनख्वा के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, जबकि खुद मौलाना पाकिस्तानी संसद में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका निभा चुके हैं। मौलाना पाकिस्तान में विदेश नीति को लेकर संसद की समिति और कशमीर समिति के भी प्रमुख रह चुके हैं।
मौलाना फजल-उर-रहमान को नवाज शरीफ की सरकार में केंद्रीय मंत्री का दर्जा मिल चुका है। पिछले साल वह सरकार के विरोधी समूह की ओर से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार भी बनाए गए थे। उन्हें तालिबान का समर्थक माना जाता है। हालांकि कुछ समय पहले से वह खुद के उदारवादी होने की बात कह रहे हैं।
मौलाना ने साल 1988 में बेनजरी भुट्टो के प्रधानमंत्री बनने पर साफ कहा था कि एक औरत की हुक्मरानी उन्हें कबूल नहीं है। हालांकि बाद में विवाद बढ़ने पर उन्होंने इस बयान को वापस ले लिया था। यही नहीं पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की सत्ता में भी मौलाना रहमान चर्चा में रहे थे। कारण कि 9/11 के हमले के बाद पाकिस्तान ने तालिबान के खिलाफ अमेरिकी मुहिम का साथ दिया था और मौलाना ने इसकी मुखालफत की थी।
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