नानाजी देशमुख की जयंती के मौके पर दिल्ली में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीबी भारत छोड़ो अभियान की शुरुआत की. जिसके तहत 2022 तक गरीबी मुक्त भारत बनाने का लक्ष्य सरकार ने रखा है. बताया जाता है कि यह अभियान नानाजी के विचारों से ही प्रेरित है.
दरअसल, नानाजी ने भारत के कई गावों में सामाजिक पुनर्गठन कार्यक्रम चलाया था. जिसके तहत गावों के उद्धार के लिए काम किया गया. यही वजह है कि नानाजी की छवि नेता ही नहीं, बल्कि एक समाजसेवी की भी थी.
ठुकरा दिया मंत्री पद…
नानाजी देशमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनसंघ से भी जुड़े थे. उन्हें बेहद शालीन और जमीन से जुड़े नेता समझा जाता था. उनके बारे में एक किस्सा यह भी मशहूर है कि 1977 में जब उन्हें जनता पार्टी की सरकार में मंत्री पद में शामिल किया गया तो उन्होंने यह कहते हुए पद ठुकरा दिया कि 60 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को मंत्री नहीं बनना चाहिए और सरकार से बाहर रहते हुए समाज सेवा करना चाहिए.
पहला सरस्वती शिशु मंदिर शुरू किया…
विनोभा भावे के भूदान आंदोलन में नानाजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसके अलावा जय प्रकाश नारायण के सम्पूर्ण क्रांति आंदोलन को भी उन्होंने खुला समर्थन दिया था.
1950 में नानाजी ने ही देश का पहला सरस्वती शिशु मंदिर गोरखपुर में शुरू किया था. इसके बाद उन्होंने चित्रकूट में दीनदयाल रिसर्च इंस्टिट्यूट की भी शुरुआत की.
शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में दिए योगदान के लिए उन्हें 1999 में राज्यसभा सदस्य मनोनीत किया गया. मालूम हो कि नाना जी को पद्म विभूषण अवार्ड से भारत सरकार ने सम्मानित किया था. मृत्यु के पश्चात उनकी मर्जी के अनुसार उनका शव एम्स में डोनेट किया गया है.
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