इस तीर्थ को की प्रसिद्धि का असली श्रेय श्रेय ब्रह्मलीन संतश्री केशवदासजी त्यागी (फलाहारी बाबा) को जाता है। हालांकि तीर्थ अपनी भंडारा प्रथा के चलते अर्द्धकुंभ और सिंहस्थ में लोकप्रिय है। वर्तमान में उनके शिष्य मंहत बद्रीदासजी तीर्थ का संरक्षण कर रहे हैं।
इतिहास की मानें तो लगभग 600 साल पहले वैष्णव संप्रदाय के वनखंडी नामक एक महात्मा यहां निवास करते थे, जिन्हें लाल बाबा भी कहते थे।
लाल बाबा प्रतिदिन धाराजी के नर्मदा तट पर स्नान के लिए जाते थे और सूर्योदय के समय जटाशंकर लौटकर भगवान का अभिषेक करते थे।
आपके बिजनेस में हो रहा हैं घाटा तो अपनाये सिर्फ ये तरकीब…
की
लोक मान्यता के अनुसार चंद्रकेश्वर तीर्थ पर अत्रि ऋषि के पुत्र चंद्रमा का आश्रम था, जो कालांतर में च्यवन ऋषि की तपोभूमि बना और चंद्रमा ने जटायु की मदद की थी। इससे जाहिर है कि अनादिकाल में यहां पर जटायु ने तप किया था।इस तीर्थ पर श्रावण मास में पिछले15 वर्षों से अखंड महारुद्राभिषेक हो रहा है। इसमें भगवान जटाशंकर का महारुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन, महामृत्युंजय मंत्रों का जाप, पंचाक्षर मंत्र जाप, सहस्त्रार्चन और हवन आदि क्रियाएं जारी हैं।जटाशंकर महादेव पर नीले व लाल रंग की धारियां हैं, इसलिए इसे नीललोहित शिवलिंग भी कहा जाता है। मंदिर की छत से सटी चट्टान पर बिल्प पत्र का वृक्ष है, इसलिए बिल्वपत्र और जल से भगवान का अखंड अभिषेक होता है।
Live Halchal Latest News, Updated News, Hindi News Portal