मप्र हाईकोर्ट ने एक अहम आदेश में कहा है कि आरक्षित वर्ग (एससी, एसटी, ओबीसी, ईडब्ल्यूएस) के प्रतिभावान अभ्यर्थियों को उनकी पहली चॉइस के अनुरूप ट्राइबल स्कूल से शिक्षा विभाग द्वारा संचालित स्कूलों में वरीयता क्रम में पदस्थापना दें। जस्टिस संजीव सचदेवा व जस्टिस विनय सराफ की युगलपीठ ने मामले में स्कूल शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव व आयुक्त लोक शिक्षण को पूरी प्रक्रिया तीस दिनों में पूरी करने के निर्देश दिए हैं। युगलपीठ ने मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि राज्य सरकार मेरिट को डी-मेरिट नहीं बना सकती। इतना ही नहीं न्यायालय ने कहा कि डिवीजन बेंच का आदेश सिंगल बेंच पर बाध्यकारी नहीं है। हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच पर केवल सुप्रीम कोर्ट का फैसला ही बंधनकारी है।
जबलपुर निवासी वंदना विश्वकर्मा, विदिशा निवासी सौरभ सिंह ठाकुर, शिवपुरी निवासी सोनू परिहार, देवास निवासी रोहित चौधरी, सागर निवासी अमन दुबे, कु. आकांक्षा बाजपेयी सहित दो दर्जन से अधिक प्राथमिक शिक्षकों द्वारा 2023 में याचिकाएं दायर की गई थीं। आवेदकों की ओर से कहा गया कि प्राथमिक शिक्षक भर्ती 2020-23 में अनेक आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को उनकी मेरिट के आधार पर अनारक्षित वर्ग में परिवर्तित करके उनकी पदस्थापना ट्रायबल वेलफेयर विभाग की शालाओं में कर दी गई। जबकि उन्होंने ट्रायबल वेलफेयर विभाग का एक भी स्कूल अपनी चॉइस में दर्ज नहीं किया था।
आवेदकों की ओर से कहा गया कि उसे कम अंक लाने वाले अभ्यर्थियों को उनकी पसंद के अनुसार स्कूल शिक्षा विभाग में पोस्टिंग कर दी गई है। आवेदकों की ओर से अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ एवं प्रवीण कुमार कुर्मी बनाम मध्य प्रदेश शासन के प्रकरण में स्पष्ट किया है कि यदि आरक्षित वर्ग का अभ्यर्थी मेरिट में उच्च स्थान प्राप्त करता है तो उसकी गणना आरक्षित वर्ग में नही की जाएगी, बल्कि उसे उसकी प्रथम वरीयता क्रम मे अनारक्षित वर्ग मे पोस्टिंग की जाएगी। सुनवाई पश्चात न्यायालय उक्त तल्ख टिप्पणी के साथ उक्त निर्देश दिए।