आध्यात्मिकता लोगों में बड़ी जिज्ञासा और रहस्य उत्पन्न करती है। तमाम लोग अभी तक आध्यात्मिकता का सही अर्थ नहीं समझ पाए हैं। ऐसे लोग यही समझते हैं कि आध्यात्मिकता का अर्थ अभाव में रहकर जीवन व्यतीत करना व स्वयं को कष्ट देना है, जबकि सच्चाई इसके विपरीत है। आध्यात्मिकता का संबंध मनुष्य के आंतरिक जीवन से है।
आध्यात्मिकता के लिए मनुष्य को अपना घर छोड़ने या शरीर को कष्ट देने की कोई जरूरत नहीं होती। बस उसे अपनी समस्त मानसिक कमजोरियों का त्यागकर और स्वयं को आंतरिक स्तर पर स्थिर करना होता है। इसके बाद उसके भीतर से जो भी आदेश मिले उसे उसका पालन करना होता है। आध्यात्मिकता का मतलब स्वयं को परमसत्ता के सामने पूर्ण रूप से समर्पण कर देना और फिर उसी की प्रेरणानुसार अपने जीवन में विकसित होना है। अपने आप को जान लेना ही है। आध्यात्मिक व्यक्ति को निरंतर परमसत्ता से आंतरिक आदेश मिलता रहता है।
आध्यात्मिकता का अर्थ मनुष्य की वे सभी गतिविधियां हैं जो उसे निर्मल बनाती हैं, आनंद से भर देती हैं, पूर्णता का अहसास कराती हैं और स्वयं से उसका परिचय कराती हैं। आध्यामिकता में जो सत्य है उसे ही स्वाभाविक रूप से ग्रहण करना है। आध्यात्मिक व्यक्ति अपने अनुभव से यह जान लेता है कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है। वैसे आध्यात्मिकता और धर्म एक दूसरे से संबंधित जरूर हैं, लेकिन इसके बावजूद दोनों में अंतर है।
आध्यात्मिकता, सांसारिक भौतिकवाद से ऊपर है जिसकी कोई तुलना नहीं की जा सकती। यह हमारे आंतरिक जिंदगी के विश्वास और चमत्कारों से जुड़ी कड़ी है। यह मानव मूल्य की आधारशिला है जिस पर हम आस्था और भरोसा करते हैं। आध्यात्मिकता यही ज्ञान और समझ हममें विकसित करती है कि सही मायने में हमारे जीवन का उद्देश्य और अर्थ क्या है।
हमारा व्यक्तिगत और सामूहिक कल्याण सच्ची आध्यात्मिकता में ही है इसलिए हमें इसकी तलाश करनी चाहिए और उसे ही अपनाना चाहिए। इसके मार्ग पर चलकर हमारा दुख छोटा हो जाता है और हमारी हर मुश्किल आसान हो जाती है। आध्यत्मिकता में समाज और संसार के बीच रहते हुए मन की प्रसन्नता बनी रहती है। आध्यात्मिकता से हमारा व्यक्तित्व न केवल निखरता है, बल्कि उसमें मजबूती भी आती है।