भगवान शिव और श्री गणेश का रिश्ता पिता-पुत्र का रिश्ता है. दोनों ही देवता हिन्दू धर्म के प्रमुख देवता है. श्री गणेश का जन्म माता पार्वती के मैल से हुआ था. माता ने स्नान से पूर्व अपने शरीर के उबटन से एक प्रतिमा का निर्माण किया था और फिर उसमे प्राण डाल दिए थे. पौराणिक कथाओं में इसके साथ ही यह भी सुनने को मिलता है कि एक बार शिव जी ने क्रोधित होकर अपने पुत्र गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया था. लेकिन ऐसा क्यों? तो आइए जानते है इसके पीछे की कथा के बारे में…

जब माता पार्वती ने अपने मैल से प्रतिमा का निर्माण किया और उसमे प्राण डाले तो श्री गणेश का जन्म हुआ. माता ने तब श्री गणेश से कहा कि तुम मेरे पुत्र हो और तुम्हें मेरी ही आज्ञा का पालन करना होगा. माता ने आगे कहा कि मैं स्नान हेतु जा रही हूँ और तुम्हें ध्यान रखना होगा कि कोई भी अंदर न आ सके. हालांकि उसी क्षण शिव जी का आगमन होता है और वे माता के भवन की ओर अग्रसर होने लगते हैं, हालांकि माता की आज्ञा के अनुसार श्री गणेश भगवान शिव को रोकने लगते हैं और शिव जी को प्रवेश की अनुमति वे नहीं देते हैं.
श्री गणेश का हठ देखकर शिव जी क्रोधित अवस्था में आ गए और उन्होंने अपने त्रिशूल की मदद से श्री गणेश की गर्दन पर प्रहार किया. शिव जी के त्रिशूल के प्रहार से गणेश जी का सिर धड़ से अलग हो गया. जब माता ने यह दृश्य देखा तो वे भी क्रोधित हो उठी और उनकी क्रोधाग्नि से समूचे संसार में हाहाकार मच गया. सभी देवताओं ने बालक को पुनः जीवित करने के लिए शिव जी से कहा. इस दौरान भगवान विष्णु एक हाथी का कटा हुआ सिर लाए और बालक के धड़ में हाथी का सिर लगाकर शिव जी ने उसे पुनः जीवित कर दिया.
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